एक दिन ज़िंदगी …….

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एक दिन ज़िंदगी ने कहा रूठकर,
क्या मेरे बिना रह पाओगे तुम ?
बेरुख़ी इतनी क्यूँ है ? तुम्हें मुझसे यूँ ,
किसलिए क्या मुझे ये बताओ तुम ?

जन्म से भी पहले मैं तुम्हारी हुई,
जो तुम्हारी दशा, वो हमारी हुई,
न शिकवा किया, ना शिकायत करी,
साथ हर पल तुम्हारा निभाती रही,
फिर भी ये बेरूखी ,ये नाराज़गी,
किसलिए क्या मुझे ये बताओ तुम ?

मेरी परवाह नहीं, चलो माना ये भी,
तुम जीते मैं हारी, है स्वीकार ये भी,
अच्छा चलो, आज बताओ ! इक बात अभी,
जी सकोगे बिन हमारे, क्या एक पल कभी ?

सोचना फिर, सोचकर बताना मुझे !
मृत्यु तलक रहेगा इंतज़ार मुझे !!

प्रियंका सोनी

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