वर्षों से….!सुनता चला आ रहा हूँ कि…ले रहा समाज अब अँगड़ाई है…पर समझ न पाया प्यारे मित्रों,यह कैसी घड़ी विकास की आई है…खूब धड़ल्ले से….!बिक […]
Category: सम्पादकीय
एच०आई०वी० एड्स, बनाम चुनौतियों की श्रृंखला – सीमा सिंह
पूर्वांचल लाइफ/जौनपुर जीरो पेसेंन्ट (1959) से आज तक के समय को एच०आई०वी०/एड्स के परिपेक्षय में देखा जाय तो बेहद डरावना और सनसनीखेज है, “गैटेन दुगास” […]
“दूर ही रहना” (ग़ज़ल)
लकीरों में भी सब बिखरा हुआ है दूर ही रहनामुकद्दर का भी कुछ लिक्खा हुआ है दूर ही रहना तुम्हारे पास अच्छे लोग हैं तुम […]