दिल्ली हाईकोर्ट: पिंकी राजगुरु
नई दिल्ली।
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि माता-पिता अपने बेटे को घर से बेदखल कर देते हैं, तब भी उसकी पत्नी यानी बहू को उसी घर में रहने का अधिकार बना रहेगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि शादी के बाद जब पत्नी अपने पति के घर में रहने लगती है, तो वह घर ‘साझा घर’ (Shared Household) माना जाता है, और घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत उसे वहां से बेदखल नहीं किया जा सकता।
जस्टिस संजय नरूला की एकल पीठ ने यह निर्णय देते हुए कहा कि सिर्फ इस आधार पर कि पति को माता-पिता ने घर से निकाल दिया है, पत्नी को ससुराल से बेदखल नहीं किया जा सकता। अदालत ने ससुराल पक्ष की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपनी बहू को घर खाली करने का आदेश देने की मांग की थी।
2010 से चल रहा था विवाद
यह विवाद वर्ष 2010 में शुरू हुआ था, जब याचिकाकर्ता के बेटे की शादी हुई और बहू ससुराल में रहने लगी।
एक वर्ष बाद यानी 2011 में, पति-पत्नी के रिश्ते बिगड़ गए और दोनों के बीच कई कानूनी विवाद शुरू हो गए। पति ने दावा किया कि उसे घर से निकाल दिया गया है, जबकि बहू ने घर में रहना जारी रखा और ससुराल छोड़ने से इनकार कर दिया।
ससुराल वालों ने उठाया ‘शांतिपूर्ण जीवन’ का तर्क
पति के माता-पिता ने अदालत में यह दलील दी कि घर उनकी स्वामित्व वाली संपत्ति है और अब जब बेटा वहां नहीं रहता, तो बहू के पास वहां रहने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि उन्हें शांतिपूर्ण जीवन का अधिकार है, जिसे बहू की मौजूदगी से खतरा है।
हालांकि निचली अदालत ने ससुराल पक्ष की याचिका को पहले ही खारिज कर दिया था और कहा था कि बहू को घर के भूतल (ग्राउंड फ्लोर) पर रहने की अनुमति दी जाएगी, जबकि सास-ससुर ऊपर की मंजिल पर रहेंगे।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को माना उचित
दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि यह व्यवस्था दोनों पक्षों के हितों का संतुलन बनाती है।
अदालत ने कहा, “शादी के तुरंत बाद पत्नी अपने पति के घर में रहती है, तो वह भी उस घर की निवासी मानी जाती है। ऐसे में पति के बेदखल हो जाने से पत्नी का वैधानिक अधिकार समाप्त नहीं होता।”
‘साझा घर’ की कानूनी परिभाषा को फिर किया स्पष्ट
अदालत ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत “साझा घर” का अर्थ है-वह स्थान जहाँ पत्नी अपने पति या परिवार के साथ रहती है या रह चुकी है। इस अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू उत्पीड़न से सुरक्षा देना है, न कि उन्हें घर से निकालने का औजार बनाना।
फैसले का महत्व
यह फैसला उन मामलों के लिए मिसाल बन सकता है, जहाँ विवाह टूटने या पारिवारिक विवाद की स्थिति में पत्नी को ससुराल से बेदखल करने की कोशिश की जाती है। अदालत ने एक बार फिर दोहराया कि बहू को ससुराल में रहने से रोका नहीं जा सकता, जब तक कि वैध कानूनी प्रक्रिया से उसका अधिकार समाप्त न कर दिया जाए।
शीर्षक सुझाव:
1.दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बेटे के बेदखल होने पर भी बहू का ससुराल में रहेगा अधिकार
2.पति के घर से निकाले जाने पर भी पत्नी का ‘साझा घर’ पर हक कायम – हाईकोर्ट
3.ससुराल से बहू को नहीं निकाला जा सकता, भले ही पति हो बेदखल: दिल्ली हाईकोर्ट
