कसम……!

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मित्रों मानो मेरी बात….
संसार में….कसम खाना….!
कसम से…सबसे आसान…और…
सबसे कठिन काम है…
जान भी नहीं सका है कोई,
अब तक कसम का असली मरम…
मान्यताओं के अनुसार….!
झूठी खाने पर कसम,
व्यक्ति हो जाता है भसम….
मित्रों कसम का तो हमेशा से ही,
बना हुआ है समाज में भरम….
कसम की बात आते ही…!
सबको याद आने लगते हैं,
अपने अच्छे-बुरे सब करम….
समाज में….कसम के नाम पर….
झूठा व्यक्ति झट से हो जाता है गरम
और सच्चा….अगर भूल से भी….
झूठा जो साबित हुआ कभी….!
महसूस करता है वह अतिशय शरम
मित्रों….कसम का मतलब है…!
साफगोई का अंतिम कदम….
कसम का मतलब है,
निर्णय आर-पार का हरदम….
कसम….विश्वास का चरम है….
निर्जीव है….मगर लोगों को…
डराने के लिए….समाज में….
ज़िन्दा और चलता-फिरता बरम है…
मित्रों….मनुष्य का शरीर….!
कसम का हरम है….और….
मन-बुद्धि-विचार-विवेक…
इसके धरम हैं….जिनके कारण….!
कसम समाज में थोड़ा-बहुत नरम है
“रुपये-पैसे” ने भी…पर्दे के पीछे से…
कसम के नाम पर…..!
समाज में लगा रखा मरहम है….
मित्रो…कसम अभिमान होता है….
कसम संघर्षों का विराम होता है….
कभी पीड़ा तो कभी उत्साह होता है,
सच तो यह है कि…कसम का दायरा
बेहद अपार होता है….
कसम….कभी सच को….
उजागर करने के लिए….!
सामाजिक मजबूरी है…..
कभी लोगों के बीच…
अनायास ही.बढ़ाती दूरी है….
बBबात और मित्रो…!
कसम खाने को…निश्चित तौर पर…
व्यक्ति में साहस होना जरूरी है….!!
कसम खाने को…निश्चित तौर पर…
व्यक्ति में साहस होना जरूरी है….!!

रचनाकार….
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ

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