जौनपुर।
भारतीय संस्कृति केवल परंपराओं का संग्रह नहीं, बल्कि करोड़ों वर्षों की समरस जीवनशैली का वैज्ञानिक एवं दार्शनिक सार है। हमारे ऋषि-मुनियों ने न केवल समय, काल और ऋतुचक्र को समझा, बल्कि ब्रह्मांड के रहस्यों तक पहुँच कर ऐसी जीवन-परंपरा का निर्माण किया जो आज भी यथावत जीवंत है।
जब विश्व की अन्य तमाम सभ्यताएँ समय की धूल में विलीन हो गईं, तब भी भारत की संस्कृति आज भी विज्ञान, अध्यात्म और प्रकृति से समन्वित रूप में जीवित है। यह वह संस्कृति है, जो 200 खरब ब्रह्मांडों की परिकल्पना करते हुए सनातन शाश्वत चेतना का दर्शन कराती है।
सावन: हरियाली, ऊर्जा और संतुलन का महिना
सावन का महीना न केवल प्राकृतिक रूप से हरा-भरा, जलमय और जीवनदायी होता है, बल्कि शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धिकरण का अवसर भी होता है। इस ऋतु में रोगाणु, विषाणु, विषैले जीव-जंतु अत्यधिक सक्रिय होते हैं। अतः भारतीय परंपरा में हरी पत्तेदार सब्जियों, गुड़, मांसाहार एवं मछली का सेवन वर्जित किया गया है। यह निषेध केवल धार्मिक नहीं, बल्कि पूर्णतः पर्यावरणीय व जैविक संरक्षण की दृष्टि से अत्यंत विज्ञानसम्मत है।
सावन और शिव: प्रकृति और पुरुष का मिलन
सावन संपूर्ण रूप से भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है – यह तप, भक्ति, योग और ध्यान का महीना है। इस बार सावन का शुभारंभ शुक्रवार से और समापन सोमवार को हो रहा है – दोनों ही शिव के विशेष दिन माने जाते हैं। यह संयोग अत्यंत दुर्लभ है, और इस बार केवल चार सोमवार सावन में पड़ रहे हैं – जिनका ग्रह, नक्षत्रों व वर्षा से अद्भुत तालमेल है।
इस बार वर्षा भरपूर होगी, फसलें उत्तम होंगी, और मौसम संतुलित रहेगा, यह केवल खगोलीय नहीं, अपितु आध्यात्मिक संकेत भी है कि भगवान शिव प्रसन्न हैं।
चार सोमवारों के दिव्य स्वरूप
1.प्रथम सोमवार – माया स्वरूप शिव
2.द्वितीय सोमवार – महाकालेश्वर रूप
3.तृतीय सोमवार – अर्धनारीश्वर स्वरूप
4.चतुर्थ सोमवार – तांत्रिक एवं पशुपति स्वरूप
प्रत्येक सोमवार के ध्यान और पूजा का अलग आध्यात्मिक प्रभाव होता है। विशेष रूप से इस मास में की गई भक्ति, जप, ध्यान और शिवपूजन जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन ला सकते हैं।
शिव की भक्ति और जीवन का शुद्धिकरण
शिव केवल पंचोपचार से ही प्रसन्न हो जाते हैं – जल, बिल्वपत्र, धतूरा, अक्षत और मंत्र। “ॐ नमः शिवाय”, “ऊँ त्र्यंबकं यजामहे…” जैसे महामंत्रों के जप से न केवल रोग और कष्ट समाप्त होते हैं, बल्कि जीवन में शांति, स्वास्थ्य और चेतना का संचार होता है।
परंतु सावन में व्रत और पूजा तभी प्रभावी होती है, जब साधक अपने आचरण को शुद्ध करें – व्यभिचार, छल, बेईमानी, पाखंड से दूर रहें। शिव व्रती होकर भी गलत आचरण करने वाला व्यक्ति शिव के कोप का भाजन बनता है।
शिव: विज्ञान और ब्रह्मांड के प्रतीक
भगवान शिव का स्वरूप साक्षात ब्रह्मांडीय विज्ञान का मूर्त रूप है:
जटाओं में बहती गंगा – ऊर्जा का प्रवाह
मस्तक पर चंद्रमा – मन और भावनाओं का संतुलन
गले में विष – विषमता को सहने की शक्ति
त्रिनेत्र – इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन का संतुलन
त्रिशूल – त्रिगुणात्मक शक्ति (सत्व, रज, तम)
डमरू – सृष्टि की ध्वनि, ब्रह्मांडीय कंपन (फ्रिक्वेंसी)
रुद्राक्ष – ऊर्जा नियंत्रण का उपकरण
पाशुपतास्त्र – परम ब्रह्मांडीय शक्ति (Antimatter Weapon का संकेत)
शिव की शक्ति केवल विनाशकारी नहीं, सृजनात्मक भी है। माता पार्वती, माता काली – ब्लैक होल और व्हाइट होल की प्रतीक हैं, जो शिव की स्त्री शक्ति हैं – परिणयात्मक ऊर्जा, बिना जिसके शिव “शव” हैं।
निष्कर्ष
सावन केवल धार्मिक अनुष्ठान का महीना नहीं, यह प्रकृति और पुरुष, वैज्ञानिकता और आध्यात्मिकता, मानव और ब्रह्मांड के बीच संतुलन साधने का अद्वितीय अवसर है।
सरल और सात्विक भक्ति, स्वच्छ आचरण और शिवमय जीवनशैली से हम न केवल भगवान शिव को प्रसन्न कर सकते हैं, बल्कि अपने जीवन को भी अमृतमय बना सकते हैं।
“डॉ दिलीप कुमार सिंह” मौसम विज्ञानी, ज्योतिष शिरोमणि, न्यायविद
हर हर महादेव!
जय माता पार्वती!