हिंदू पंचांग के अनुसार, भगवान गणेश देवताओं में प्रथम पूज्य हैं। उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर यह आशीर्वाद पाया कि हर शुभ कार्य की शुरुआत में उनकी आराधना होगी। गणेश चतुर्थी का व्रत वर्षभर में कई बार आता है, पर भादो मास की चतुर्थी विशेष मानी जाती है। इसे गणेश चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी या हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है।
इस वर्ष यह व्रत 12 अगस्त, मंगलवार को मनाया जाएगा। तिथि का आरंभ सुबह 8:40 बजे से होकर अगले दिन 13 अगस्त, सुबह 6:35 बजे तक रहेगा। भादो का महीना वर्षा ऋतु का चरम होता है, जब चारों ओर हरियाली और पानी की प्रचुरता रहती है। ग्रामीण कहावत भी है-
“भादो मूसलाधार, बहाता खेतों में उगाता संसार।”
शुभ मुहूर्त
शास्त्रों के अनुसार गणेश पूजन गोधूलि बेला में करना उत्तम होता है। इस बार शुभ समय शाम 6:50 बजे से 7:16 बजे तक रहेगा।
पूजन विधि
1.तैयारी – स्नान के बाद पूजा स्थान को स्वच्छ करें और एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं।
2.प्रतिष्ठा – चौकी पर भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
3.अभिषेक – गणेश जी का जल या गंगाजल से स्नान कराएं।
4.अर्पण – उन्हें प्रिय फल-फूल, लड्डू और दूब चढ़ाएं।
5.संकल्प एवं मंत्र जाप – “ॐ गं गणपतये नमः” या “वक्रतुंड महाकाय…” मंत्र का जाप करें।
6.आरती एवं प्रसाद वितरण – आरती के बाद प्रसाद अधिक से अधिक लोगों में बांटें।
चंद्र दर्शन का महत्व
गणेश चतुर्थी की रात चंद्र दर्शन का विशेष विधान है। इस वर्ष उत्तर भारत में चंद्रमा रात 9:00 बजे उदित होगा। यदि बादलों या अन्य कारणों से दर्शन संभव न हो, तो रात 9:30 बजे मन में संकल्पपूर्वक चंद्र पूजा करें।
व्रत समापन
पूजन और चंद्र दर्शन के बाद व्रत का समापन किया जाता है। अगले दिन प्रातः पारण के साथ व्रत समाप्त करें। मान्यता है कि शुद्ध चित्त और आस्था से यह व्रत करने पर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।