प्लेग महामारी के दौर में शुरू हुई थी मोजिज़ाती परंपरा, आज भी इंसानियत और एकता का देता है पैग़ाम
जौनपुर, उत्तर प्रदेश शीराज़-ए-हिंद के नाम से मशहूर ऐतिहासिक नगरी जौनपुर एक बार फिर 31 जुलाई यानि की आज मोहर्रम की कदीम और मोजिज़ाती रवायत को ज़िंदा करेगी। पुरानी बाज़ार स्थित इमामबाड़ा मीर बहादुर अली मरहूम दलान से बेगमगंज सदर इमामबाड़ा तक निकाले जाने वाला अलम नौचंदी व जुलूस-ए-अमारी ना केवल शिया समुदाय की आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह कारवां इंसानियत, वफ़ा और सामाजिक सौहार्द का पैग़ाम भी देता है।
इस ऐतिहासिक जुलूस की नींव लगभग 85 वर्ष पूर्व रखी गई थी। आयोजक सैय्यद दिलदार हुसैन रिज़वी ने बताया हैं कि यह सिलसिला मेरे वालिद मरहूम सैय्यद ज़ुल्फ़िकार हुसैन रिज़वी ने उस समय शुरू किया जब शहर में प्लेग जैसी जानलेवा महामारी फैली हुई थी। लोगों ने उलेमा की सलाह पर अलम का जुलूस निकाला, और अलम मोजिज़ाती रूप में राहत का ज़रिया बना। तभी से यह परंपरा बिना रुके जारी है।
मुख्य तक़रीर मौलाना सैय्यद मुराद रज़ा रिज़वी (पटना) करेंगे
नमाज़-ए-मग़रिबैन की इमामत: मौलाना सैय्यद सफदर हुसैन ज़ैदी कराएँगे
इस रूहानी जुलूस में जौनपुर ही नहीं, बल्कि आसपास के ज़िलों से भी अकीदतमंद बड़ी संख्या में शामिल होंगे। शहर की सभी प्रमुख अंजुमनें अलम बरदारों, मातमदारों और ताज़ियादारों के साथ इस जुलूस में शिरकत करेंगी।जुलूस की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें सभी धर्म और समुदाय के लोग भागीदारी करते हैं। रास्ते में सबीलें, मेडिकल कैंप, और पानी की व्यवस्था हर वर्ग के लोग मिलकर करते हैं। यह कर्बला से निकला हुआ वह पैग़ाम है जो मज़हब से ऊपर इंसानियत और इंसाफ की मिसाल देता है।जुलूस-ए-अमारी आज महज़ मजहबी रस्म नहीं, बल्कि एक रूहानी कारवां बन चुका है—जो हर साल जौनपुर को वफ़ा, सब्र, और अज़ादारी की रोशनी से रौशन करता है।