गंगा की जलप्रलय से जमीन पर संकट: कोनिया के गांवों में तेज़ कटान, पलायन की आशंका

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धनंजय राय पूर्वांचल लाइफ
भदोही।
गंगा नदी के उफनते जलस्तर और तेज़ होती कटान ने कोनिया क्षेत्र के गांवों में दहशत का माहौल बना दिया है। हरिहरपुर, भुर्रा और छेछुआ जैसे गांवों की उपजाऊ जमीन लगातार गंगा की धारा में समा रही है। बीते 24 घंटे में जलस्तर में हुई अप्रत्याशित वृद्धि ने कटान के खतरे को और गंभीर बना दिया है।

ग्रामीणों का आरोप है कि बीते चार वर्षों में कटान रोकने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन नतीजा सिफर रहा। तीन करोड़ रुपये की लागत से लगाए गए ट्यूब कटर ‘भ्रष्टाचार की भेंट’ चढ़ गए। स्थानीय लोगों का कहना है कि इन ट्यूब कटरों ने कटान रोकने के बजाय उसे और तेज कर दिया। एक इंच ज़मीन भी नहीं बचाई जा सकी, बल्कि बर्बादी और बढ़ गई।

ग्रामीणों की मांग है कि अब तक हुए कटान-रोधी कार्यों की जांच एसआईटी से कराई जाए ताकि जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय हो सके। उनका यह भी कहना है कि जिला प्रशासन संबंधित विभाग की नाकामी पर आंख मूंदे बैठा है और उसे बचाने में जुटा है।

अस्तित्व पर मंडरा रहा संकट
कोनिया क्षेत्र के कला तुलसी, धनतुलसी, हरिरामपुर, भुर्रा, छेछुआ, मवैया, भभौरी, इटहरा और डीघ शांतिपुर जैसे गांव हर साल बाढ़ के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। ग्रामीणों ने चेताया है कि यदि जल्द ही गंगा किनारे वॉल फेंसिंग जैसे प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो उन्हें अपना गांव छोड़कर पलायन के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

प्रशासन की उदासीनता और तकनीकी असफलता के बीच गंगा की कटान से ग्रामीणों की ज़िंदगी और ज़मीन दोनों खतरे में हैं। अब देखना यह है कि प्रशासन कब जागता है तब जब गांव बचे ही न रहें?

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