“कविता- पछतावा”

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पूर्वाचल लाईफ़/पंकज जायसवाल

अब पछताने से क्या फायदा,
जब आग तूने खुद लगाई थी?
अब आँसू बहाने से क्या फायदा,
जब खुशियों की कद्र न की थी?

किस्मत ने दो पल दिए थे साथ जीने के,
पर तूने ही उन्हें रेत की तरह फिसला दिया,
अब उन लम्हों को याद करके रोने से क्या फायदा?

बीता वक्त लौटकर नहीं आता,
जो साथ छोड़ा, वो अब लौटेगा नहीं,
अब उसकी याद में तड़पने से क्या फायदा?

जो आँसू तेरे लिए बहे, उन्हें पानी समझा,
अब इन आँखों में समंदर खोजने से क्या फायदा?
जो चाहत की आग में जल चुके हैं,
उन बुझी चिंगारियों में लावा ढूँढने से क्या फायदा?

तेरी यादों में एक उम्र बिता दी हमने,
अब उस दूरी को मिटाने से क्या फायदा?

नसु एंजेल, नागपुर महाराष्ट्र

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