नवरात्रि विशेष… “लेखक”आकृति विज्ञा “अर्पण”

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अहो औरतों !तुमसे जग है ,
पैमानों को ध्वस्त करो।
फुदक फुदक के खाओ पीओ
व्यस्त रहो तुम मस्त रहो।

हंसती हो तो लगता है कि
गंगा मैया जारी हैं।
दुनिया की ये सारी खुशियाँ
देखो देन तुम्हारी हैं।

ख़ुशियों की तुम नदिया हो
बिन कारन न कष्ट सहो…..

फुदक फुदक कर खाओ पीओ
व्यस्त रहो तुम मस्त रहो……

मुस्क इया तुम्हरी सुन लो ना
जैसे फूल खिलन को हो।
दोनो होठ सटे जैसे कि
जमुना गंग मिलन को हो।

बाधाओं को ढाह चलो तुम
अपने मन की राह चलो तुम

टेंशन के अनगिनत किलों को
मार पैर से ध्वस्त करो……

फुदक फुदक कर खाओ पीओ
व्यस्त रहो तुम मस्त रहो…

खड़ी हुई तुम जहां सखी
वहां से लाइन शुरू हुई।
पर्वत सा साहस तुममे है
तुम तुरुपन की ताग सुई।

चँहक रहे मन की संतूरी
स्वस्थ रहो तुम यही जरूरी।

थाल सभी को बहुत परोसे
अपनी थाली फर्स्ट करो…..

फुदक फुदक कर खाओ पीओ
व्यस्त रहो तुम मस्त रहो।

तुम धरती के जैसी हो
जहां सर्जना स्वयं सजे।
सारे राग भये नतमस्तक
पायलिया जब जहाँ बजे।

जो होगा तुम हल कर लोगी,
पानी से बादल कर लोगी।

सब कुछ मुट्ठी के भीतर है
जहाँ लगे ऐडजस्ट करो…..

फुदक फुदक कर खाओ पीओ
व्यस्त रहो तुम मस्त रहो।

खुद ही तुम अब डील करोगी,
अपनी वाली फील करोगी।
कैरेक्टर के सब प्रश्नो को,
मुसकाकर रीविल करोगी।

समय बड़े घावों का हल है,
ग़र हिम्मत साहस संबल है।

सब सिचुएशन आलराइट है,
चिल्ल अभी तुम जस्ट करो…..

फुदक फुदक कर खाओ पीओ
व्यस्त रहो तुम मस्त रहो….

 आकृति विज्ञा 'अर्पण' 
 Akriti Vigya Arpan

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