मैया देख तनिक तो मुझको…!
कितनो बड़ो ह्वै गयो हूँ मैया….
पर….करि-करि चोटी तुम तो…
छोरी बनाय दई हो मैया…
सखा सकारे हास करत हैं,
कैसे चराऊँ मैं गैया….?
कूल कालिंदी जो मैं जाऊँ,
या जाऊँ कभी जो ताल-तलैया…
संग के छोरे सबै कहत हैं….
खेलन को छुवन-छुवैया
पर छोरी सब…पकरि-पकरि के बोलै
आवहु खेलो गुडुही-गुड़िया….
एक अबूझ पहेली मानै मुझको
हौं छोरी या छोरा बाँका….!
हल पहेली करने को,
झट उतार देत हैं सब मेरी कछिया….
साँच कहूँ मैं तुमसे मैया
बहुतै लाज लगे है…तब तो मैया…
दाँतन बिच उंगली करि-करि…!
हास करत हैं जब सब सखियाँ…
और…एक दूजे से सब बोलें….
ग़फ़लत होय गई रे दैया….
हम माथ झुकाए बैठि रह्यो…और..
सोचूँ….होय क्या रह्यो है रे दैया…?
कसम तुम्हार खात हूँ मैया….!
यहि चोटिन के चक्कर में,
चौपट होय गइ मानो,
मोरी सारी दिन और रतियाँ…..
अब और कहूँ क्या मैं तुमसे मैया
बस चोटी मैं ना करवैहों मैया….
अब बस एक कहा तुम मेरा मानो,
मुण्डन मोर करा दो मैया..…
इन काली लम्बी चोटिन से,
छुटकारा मोय दिला दो मैया….
सुन्दर,नीक,सपूत बनि…..!
खूब चरैहों मैं तुम्हरी गैया….
मेरो भी सब पीर खत्म होय जैहैं
सच मानो तुम मैया…..
बस मुण्डन मोर करा दो मैया….
बस मुण्डन मोर करा दो मैया….
रचनाकार….
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त,लखनऊ