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जौनपुर; पुराणों में कहा गया है कि सकल पितरों के श्राद्ध पितृ पक्ष में तीर्थों पर करें या पवित्र नदियों के किनारे या घर पर विधि विधान से करें ; ऐसा करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है। श्राद्ध परम्परा के अनुसार किसी भी तीर्थ पर जाएं, जहां पूर्ण मनोयोग से पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। हरिद्वार, गया और बद्रीनाथ, ब्रह्मकपाली पर प्रत्येक पितृ का श्राद्ध होता है।
चाहे मृत पुरखे पिता के वंश के हों, माता यानि ननिहाल वंश के हों, गुरु अथवा ससुर वंश के हों। तीर्थों पर माता, दादी, परदादी, वृद्ध परदादी आदि के श्राद्ध कभी भी किए जा सकते हैं। पुत्र पौत्र आदि को फल मिलता है और पितृगण संतृप्त हो जाते हैं।
हां बिना अन्न दान के मातृ ऋण से मुक्ति नहीं मिलती। इस ऋण से मुक्त होना है तो प्रभास क्षेत्र पाटण जाइए, यह ऋण वहां किए श्राद्ध से ही उतरेगा जहां आपको अन्न दान करना चाहिए। उक्त बाते ब्रहराष्ट्र एकम विश्व महासंघ के जनपद जौनपुर संगठन मंत्री और पत्रकार पंकज सीबी मिश्रा ने कही।
हिन्दू धर्मग्रंथों में पितृ पक्ष से जुड़ीं एक कथा का वर्णन मिलता है जो इस प्रकार है कि जब द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के दौरान कर्ण का निधन हो गया और उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची, तो उन्हें वहां नियमित रूप से भोजन नहीं मिल रहा था। इसके बदले में कर्ण को खाने के लिए सोना और आभूषण दिए गए। इस बात से उनकी आत्मा निराश हो गई और कर्ण ने इस बारे में इंद्र देव से सवाल किया कि उनको वास्तविक भोजन क्यों नहीं दिया जा रहा है? तब इंद्र देव ने इसके कारण का खुलासा किया और कहा कि, आपने अपने पूरे जीवन में इन सभी चीजों का दान दूसरों को किया है लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों और पुरखों के लिए कुछ नहीं किया। इसके जवाब में कर्ण ने कहा कि वह अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानते थे और यह सुनने के बाद, कर्ण को भगवान इंद्र ने 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी जिससे वह अपने पूर्वजों को श्राद्ध कर्म कर सके।
वर्तमान युग में इन्ही 15 दिनों की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है। सनातन धर्म में पितृ पक्ष यानी श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व माना गया है। इस 16 दिनों की अवधि में लोग अपने पितरों को याद करते हैं और उनके नाम से भोजन निकालते है। साथ ही पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से होती है तो इसका समापन आश्विन अमावस्या के दिन होता है। इस साल पितृ पक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू हुआ। मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो आज मातृ नवमी पर करें मातृ निमित्त श्राद्ध न गया न बद्रीनाथ और न हरिद्वार होते सभी जगह पर मातृ ऋण से मुक्त होना है तो पाटन में करें मां का श्राद्ध।
शास्त्रों की महिमा न्यारी। शास्त्रों में 16 दिनों के श्राद्ध का विशेष महत्व है। पुरखों का निधन जिस तिथि पर हुआ, उसका श्राद्ध अश्विन कृष्ण पक्ष की उसी तिथि पर किया जाता है। गरुड़ पुराण, ब्रह्मवर्त पुराण और स्कंद पुराण में माता और मातृ पक्ष के श्राद्ध की अपार महिमा बताई गई है। शास्त्रों के अनुसार जन्मदात्री मां का ऋण पुत्र पर फिर भी रहता है। इसके लिए जीवन में कभी भी एक बार गुजरात के सिद्धपुर स्थित पाटन तीर्थ पर जाकर मातृ ऋण मुक्ति श्राद्ध करना चाहिए।
प्रसिद्ध साधक प्रेम भिक्षु महाराज ने नवमी के दिन प्रभास क्षेत्र पाटण जाकर मातृ ऋण श्राद्ध करने की व्यापक महिमा गाई है। कनागतों में माता का श्राद्ध यूँ तो उनकी मृत्यु तिथि पर किया जाता है। लेकिन माता ही नहीं मातृ पक्ष की किसी स्त्री और अपने वंश की किसी स्त्री की मृत्यु तिथि मालूम न हो तो उनका श्राद्ध नवमी पर किया जाता है। नवमी अर्थात नौ के अंक को पूर्णांक माना जाता है। इस दिन श्राद्धोपरांत दक्षिणा के साथ ब्राह्मण अथवा ब्राह्मणी को जनाने वस्त्र यथा साड़ी सूट आदि दान देने का विधान है।
पितृ पक्ष निरंतर 16 दिनों तक चलते है और यह एक ऐसी अवधि होती है जब हिंदू समुदाय के लोग अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं और उनसे प्रार्थनाऐं करते हैं। साधारण शब्दों में पितृ अर्थात हमारे पूर्वज, जो अब हमारे साथ, हमारे बीच में नहीं हैं, उनका तर्पण एवं श्राद्ध करने का समय। इस माध्यम से अपने पूर्वजों को याद करना और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट की जाती है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष का आरम्भ प्रति वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में होता है और इसका अंत आश्विन अमावस्या पर होता है। श्राद्ध कर्म की पूरी अवधि पूर्वजों को समर्पित होती है। जो स्त्री पति के जीवित रहते दिवंगत हुई हो, नवमी के दिन उसके श्राद्ध पर श्रृंगार का सामान भी दान किया जाता है। श्राद्ध पक्ष में दो तरह से श्राद्ध होते हैं।अधिकांश लोग तीर्थों पर श्राद्ध करने की बजाय घर पर श्राद्ध कराते है। मातृ नवमी श्राद्ध संपन्न हो जाने पर सायंकाल पीपल के नीचे माता की स्मृति में एक दीपक प्रज्ज्वलित करने से श्राद्धकर्ता के वंश में वृद्धि होती है। नवमी श्राद्ध का दिन वर्षा ऋतु का आखिरी दिन है।
मंगलवार को सूर्यदेव कन्या राशि में प्रवेश करेंगे, इसी दिन शरद ऋतु का जन्म हो जाएगा।