बाल दिवस : नेहरू का वर्चस्व और वर्तमान में परिचर्चा का औचित्य

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पंकज सीबी मिश्रा/पत्रकार जौनपुर

(पूर्वांचल लाईफ न्यूज)

जौनपुर : आज पूरे विश्व और भारत का सौभाग्य है कि भारत नें ऐसे कर्मठ नेताओं को जन्म दिया है जिनका लोहा पुरी दुनिया मानती है। वास्तव में अयोग्य अब नेता बन रहें जबकि पहले योग्य लोगो को नेता बनाया जाता था, लेकिन मैं आशावादी हूँ, पत्रकार हूँ और डेली कॉलम लिखता हूँ, लिखने से पूर्व कठिन अध्ययन करता हूँ। मुझे यकीन है कि कोई ना कोई पुनः उस लेवल का नेता होगा जो आरक्षण के खिलाफ और महाराष्ट्र में 10% अनैतिक हक़ के मांग के खिलाफ संसद में दहाड़ेगा, जो कहेगा की एक दिन भूखे रहकर देश की अन्न सेवा करो। रात के इस घनघोर अंधेरे में एक नई सुबह की उम्मीद की किरण देख रहा हूँ मुझे यकीन है, वह सुबह फिर आएगी ज़ब एकल नेता केवल गरीबों के लिए खड़ा होगा, किसी जाति या आरक्षण के लिए नहीं। 30 जनवरी 1948 को बापू की हत्या कर दी गई। नेहरू तब सत्ताधारी दल के मुख्य नेता थे और तब से लेकर 2010 तक हमें किताबों में जो पढ़ाया जाता रहा वह यही कि नेहरू नें अंग्रेजो को खदेड़ा लेकिन अचानक हवा बदली और धीरे – धीरे नेहरू राजनीती के हवा में घुल गए। किताबों से गायब हो गए और स्थिति यह कि जिन नेहरू के जयकारे लगते थे राष्ट्रगान और राष्ट्रीय त्योहारों पर वो नेहरू आज कभी कभार याद दिलाये जाते है। नेहरू की जगह सावरकर स्थापित होने लगे है। तब बापू दंगे रोकने के लिए खुद उपवास पर बैठ जाते थे पर नेहरु का नाम कही किसी उपवास में नहीं आया । महात्मा गाँधी खुद कई जगहों पर जाकर अपनी जान की परवाह किए बिना अहिंसा से हिंसा रोक पाने में सफल हो जाते थे। मार्टिन लूथर किंग जूनियर बापू को अपना आदर्श मानते थे और अहिंसा व सत्याग्रह को नस्लीय हिंसा से लड़ने का प्रमुख हथियार मानते थे। बापू की हत्या के बाद नेहरू ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा था कि पिछले वर्षों और महीनों के दौरान इस देश में काफी जहर फैल गया है, और इस जहर का लोगों के दिमाग पर असर पड़ा है। हमें इस जहर का सामना करना चाहिए, हमें इस जहर को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए। लेकिन इसके लिए हमें हिंसा और नफरत को त्यागना होगा। हम केवल प्रेम से ही इस नफरत के जहर को खत्म कर सकते हैं। पर तब कांग्रेस का वर्चस्व ऐसा था कि कांग्रेस माने नेहरू और नेहरु माने सरकार। सरकार जो चाहें वह सुनाई देगा, वही दिखाई देगा और वही पढ़ाया जायेगा। एक सच्चा नेता वह होता है जो सच और देश को ज़िंदा रखने के लिए लोगों के बीच अपनी जान की परवाह किए बिना जाता है। वह अपने समाज और देश को जोड़ने के लिए खुद को भी कुर्बान करने से परहेज नहीं करता है। ऐसी स्थिति में ही एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राज्य की नींव मजबूत होती है, जब सभी सांप्रदायिक और विभाजनकारी शक्तियां उसे तोड़ने की साजिश रचती हैं। आज बटेंगे, जुड़ेंगे, जाति – जाति करके संविधान की किताब लाहराएँगे, कौम विशेष के पक्ष में हिन्दुओं को यातनाएँ देंगे, हिंदु हक़ पर किसी और धर्म के हक़ की बात करेंगे तो फिर लोगों को नेहरू कैसे याद आएंगे ! तब के नेहरू और अब के नेहरू में बस यही फर्क है की तब नेहरू ब्रांड हुआ करते थे और अब नेहरू के नाम पर ब्रांड बनने की तैयारी है।

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