मन के आधार को निराधार कैसे कह दूं
वो प्यार है उसे बेकार कैसे कह दूं
मचलती तमन्नाओ के बीच गोते लगाता हुआ वो स्वप्न
उस स्वप्न वाटिका को सूनसान कैसे कह दूं।
गुजरती महकती खुशबूदार वो हवा
इन हवाओ के सरसराहट को तूफान कैसे कह दूं।
चांद की अगड़ाइयो में वो झिलमिलाती रोशनी
सुकून ए रोशनी को चुभन का नाम कैसे कह दूं।
मन के आधार को निराधार कैसे कह दूं
वो प्यार है उसे बेकार कैसे कह दूं।
कवयित्री पूर्णिमा सिंह , प्रतापगढ़