कैसे कह दूं

Share

मन के आधार को निराधार कैसे कह दूं
वो प्यार है उसे बेकार कैसे कह दूं

मचलती तमन्नाओ के बीच गोते लगाता हुआ वो स्वप्न
उस स्वप्न वाटिका को सूनसान कैसे कह दूं।

गुजरती महकती खुशबूदार वो हवा
इन हवाओ के सरसराहट को तूफान कैसे कह दूं।

चांद की अगड़ाइयो में वो झिलमिलाती रोशनी
सुकून ए रोशनी को चुभन का नाम कैसे कह दूं।

मन के आधार को निराधार कैसे कह दूं
वो प्यार है उसे बेकार कैसे कह दूं।

कवयित्री पूर्णिमा सिंह , प्रतापगढ़

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!