“पूर्वांचल लाइफ जौनपुर”
धर्म और आध्यात्म की दृष्टि से धर्म ग्रंथो और विष्णु पुराण में यह कहा गया है कि एक समय सम्राट बली ने अपने तप बल से 100 महान अश्वमेध यज्ञ करके पृथ्वी आकाश पाताल हर जगह विजय प्राप्त कर लिया और इंद्र का स्वर्ग लोक खतरे में पड़ गया तब सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके बली से तीन पग धरती मांग कर विराट रूप धारण करते हुए तीन पग से उन्होंने आकाश पाताल और पृथ्वी को नाप लिया और पैर रखने की जगह नहीं बची तो सम्राट बाली ने अपना सिर भगवान को पैर रखने के लिए अर्पित कर दिया इस पर परम प्रसन्न भगवान विष्णु ने उनसे कोई वर मांगने को कहा तो सम्राट बली ने कहा 4 महीने आप पाताल में मेरे द्वार पर रहकर पाताल लोक की रक्षा करेंगे और सबको दर्शन देंगे! तभी से 4 वर्ष 4 महीने भगवान विष्णु पाताल में रहते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को उनके धरती पर लौटते ही सारे शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं!
जब की इसका एक कारण व्यवहारिक रूप से वर्षा ऋतु से जुड़ा हुआ है पहले भीषण वर्षा 4 महीने लगातार होती थी और आने-जाने के साधन और सड़क मार्ग नहीं थे चारों ओर जल भर जाने और घने जंगल घास पेड़ पौधे उग जाने के कारण सांप बिच्छू और खतरनाक जीव जंतु हर तरह हर जगह भर जाते थे! आना जाना अत्यंत कठिन हो जाता था इसलिए लोग अपने घर पर रहकर चार महीने पूजा पाठ धर्म और अध्यात्म की चर्चा करते हुए शांति प्राप्त करने का प्रयास करते थे इसलिए इसको धर्म और अध्यात्म का रूप देकर ग्रहण नक्षत्र से जोड़ा गया जो बिल्कुल देशकाल परिस्थितियों के अनुकूल था!
भगवान विष्णु ही जगत के पालनहार है निर्माता है वही यज्ञ और पूजा पाठ के स्वरूप प्रमुख देवता हैं उनके बिना कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य संभव नहीं है इसलिए 4 महीने उनके धरती से पाताल में जाने के कारण कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य किया जाना संभव नहीं था! व्यावहारिक रूप से वर्षा का समय होने से चारों ओर जल भरे रहने से शुभ और मांगलिक कार्य होना लगभग असंभव थाइसीलिए इन चार महीनों में शुभ नक्षत्रों के अस्त होने और व्यवहारइक कठिनाई होने से शुभ और मांगलिक कार्यों को बंद किया गया था!