ग़ज़ल

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बस भी कर दो जुमला साहब
पगला है ना अगला साहब।

ईडी के छापों के डर से
कितनों ने दल बदला साहब।

हिंदू मुस्लिम के मंथन में
विष का गागर निकला साहब।

अच्छे दिन के सपने आए
गाड़ी मोटर बंगला साहब।

चालीस डिग्री में भी लगता
मुझ भक्तों को शिमला साहब।

पढ़ लिख कर सहना पड़ता है।
बेकारी का मसला साहब।

डरता भी हूं, करता भी हूं
रचनाओं से हमला साहब।

✍️©® अभिषेक उपाध्याय श्रीमंत देवराजपुर, कादीपुर सुलतानपुर

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