कुण्डलिया छंद

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अपने रब को भूल के, बाह्य सजाये मंच।
जीवन के त्रिरत्न को, लूट ले रहे पंच ।।

लूट ले रहे पंच, बचें अब इनसे कैसे
काठ को दीमक लगे, लगे है मन को ऐसे
कहे ‘वंदना’ चार चकरिया, पीसे सब को
अंत समय तब याद करे हैं , अपने रब को

वंदना
अहमदाबाद

पंच = पाँच इंद्रियाँ
चार चकरिया = धर्म, अर्थ, काम , मोक्ष

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