“कोशिश” के वार्षिक समारोह के संदर्भ में एक आपात बैठक

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“पूर्वांचल लाईफ” अश्वनी तिवारी

जौनपुर। रविवार को साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था “कोशिश” के वार्षिक समारोह के संदर्भ में एक आपात बैठक कवि गिरीश श्रीवास्तव की अध्यक्षता में वरिष्ठ समाजसेविका डा०विमला सिंह के आवास पर आयोजित हुई। मुख्य अतिथि प्रोफेसर वशिष्ठ अनूप “अध्यक्ष हिन्दी विभाग” काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी की उपस्थिति में वार्षिक समारोह के लिए बलरामपुर हाॅल, टी.डी.पी.जी. काॅलेज में दिनांक 3 मार्च 2024 की तिथि प्रस्तावित की गई। उपस्थित शायरों और कवियों ने संक्षिप्त काव्य पाठ भी किया। शायर अंसार जौनपुरी ने कहा “ऐसे ही कभी आके मिला क्यों नहीं करते”
“रूपोस रिवाजों को रवा़ क्यों नहीं करते” ज़ालिम पर एहसान किया क्यों नहीं करते, “तुम दस्ते सितम थाम लिया क्यों नहीं करते” पूछें कोई जाकर कभी उस शोला बया से, “लफ्जों से तेरे फूल झड़ा क्यों नहीं करते” आ आ कर मेरा हाल वो बस पूछ रहे हैं, “चेहरे की इबारत को पढ़ा क्यों नहीं करते”

कवि गिरीश श्रीवास्तव ‘गिरीश’ ने कहा,”हाथ मलमल के एक दिन बहुत पछतायेंगे” लौट कर फिर तेरी पहलू में नहीं आयेंगे, “आज की रात बसर करने दे मुसाफिर हूँ” रूका है कौन यहाँ हम भी चले जायेंगे।।
“हवश में डूब गए आचरण से हीन हुए” गवां दिये जो शाख अपना वही दीन हुए, “नहीं ऐसा नहीं अहसास नहीं है मुझको” ग़मों में भी कभी हताश न गमगीन हुए।“चाह दिल में हो तो फिर राह निकल जाते हैं” आह से देखा है फौलाद पिघल जाते हैं, “आश धीरज लगन विश्वास परिश्रम निष्ठा” कोशिशों से कठिन हालात बदल जाते हैं, “पल भर के लिए ही सही बेजान कर गई” छोटी सी परेशानी,परेशान कर गई, औकात आदमी की आयी थी दिखाने” स्तब्ध रह गया मैं हैरान कर गई”

व्यंग्य कवि सभाजीत द्विवेदी”प्रखर” ने कहा,
“जब भी करें तो एकता की बात हम करें, “अपने शिराजे़ हिन्द के सौगात की करें” जौनपुर में मोहब्बत की जलाया एक चिराग़, “इन आॅंधियों से कह दो की औकात में रहे”
“जिंदगी को देखना है आर पार देखिए”
“चढ़ती हुई नदी नहीं उतार देखिए”
“दूसरों में ऐब आप ढूंढते हैं क्यों”
“अपना चरित्र हुआ तार तार देखिए”
“हम सच बोलते रहे और किनारे खड़े रहे”
“ये झूठ बोल बोलके भगवान् हो गए”
“सियासत की मंडियों में धर्म इस तरह बिका”
“अनुसूचित दलित जाति के हनुमान् हो गए”
“सिक्का उछलते ही भिखारी ने कहा”
“लगता है नए-नए धनवान हो गए”
“दो-चार ग़ज़ल लिख लिए तो
लगने ये लगा”
“ग़ालिब, नज़ीर ,मीर से महान हो गए”

सामयिक परिवेश को रेखांकित करती हुई कवि जनार्दन प्रसाद अष्ठाना’ ने गीत सुनाया कि,
“चली है कैसी अजब हवा यह” “नागिन-सी विषदंत लिये”
“कदम-कदम शूल उगाती”
“फूलों को मुरझाती चलती„
“डाली-डाली पत्ते-पत्ते में विषगंध बसाती चलती”
“बाग उजाड़े खेत बिगाड़े”
“चली चमन का अंत लिये”

अगली कड़ी में प्रोफेसर आर. एन. सिंह ने मुक्तक पढ़ा कि
“मत वैभिन्न स्वाभाविक है लेकिन,
अमन के पैरोंकार कभी मनभेद नहीं करते,
संबंधों की कीमत से जो अवगत होते हैं,
छोटी-छोटी बातों पर विच्छेद नहीं करते,
जिस पत्तल में खाते उसमें छेद नहीं करते।”
वरिष्ठ साहित्यकार, गज़लकार
प्रोफेसर वशिष्ठ’अनूप’ ने ग़ज़ल सुनाया कि,
“था कहां तैयार झुकने को किसी के दरबार में,
पर गरीबी ले गई अपमान के संसार में,
फिर किसी बुधिया की काया बेकफ़न रखी रही,
फिर किसी होरी की बेटी बिक गई बाजार में,
छोड़कर घर चल पड़ा हल्कू मजूरी के लिए,
पेट तक भरता नहीं खेती के कारोबार में,
रक़्स करती अप्सराएॅं पारदर्शी वस्त्र में,
संतजन दिखने लगे हैं काम के अवतार में।”
और प्रसिद्ध शेर
“ढक लो चाहे लाख बदन को,
बोलोगे तो खुल जाओगे।।”

वरिष्ठ शायर अहमद निसार जी ने अपनी “आम आदमी “शीर्षक ऩज्म से कुछ अंश
हौसलों के कागज पर बाजुओं की तहरीरें,
“…सुब्हो-शाम लिखता है ,
आम आदमी क्या है ?
कोई तो यह बतलाएं ,
कोई तो यह समझाएं ,
संघ है कि शीशा है,
आम आदमी क्या है?
फलसफ़े परीशां है ,
मंतिके भी हैरा़ हैं,
अक्स हैं ना चेहरा है,
आम आदमी क्या है?
आम आदमी बनकर ,
खास लोग आएं जब,
हमने तब ये जाना है,
आम आदमी क्या है?” सुनाया।

डॉ. पी.सी. विश्वकर्मा ने कहा कि,
“वो तो नाराज़ होके रूठ गये,
क्या कहूं बात जरा सी।”
मंच संचालन कवि जनार्दन प्रसाद”अष्ठाना” ने और आभार डा०विमला सिंह ने व्यक्त किया। शोधार्थी अश्वनी तिवारी और प्रोफेसर धीरेंद्र कुमार पटेल (अध्यक्ष हिन्दी विभाग, सल्तनत बहादुर पी.जी.काॅलेज बदलापुर,जौ०) भी उपस्थित रहे।

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