रिपोर्ट : राकेश दुबे, स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम
पालघर। मुंबई–अहमदाबाद नेशनल हाइवे (NH-48) पर भ्रष्टाचार और लापरवाही की परतें अब एक-एक कर खुल रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा हाइवे निर्माण और मरम्मत के लिए जारी किए गए 600 करोड़ रुपये का अनुदान बरसात के पानी में बह गया। तेज बारिश और पहाड़ी इलाकों से आने वाले पानी के बहाव में कांक्रीट सड़कें धुल गईं, जबकि रिपोर्टों में “अत्यधिक वर्षा” का बहाना बनाकर जिम्मेदारी से बचा जा रहा है।
IRB अधिकारियों की धौंस और भ्रष्टाचार का खेल
जानकारी के अनुसार, IRB कंपनी और हाइवे विभाग के अधिकारी सवालों से बचने के लिए अपने “ऊपर तक पहुंच” की धौंस देते हैं। यही नहीं, ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच मिलीभगत से सरकारी राशि को मानो पुश्तैनी जागीर समझकर लूटा जा रहा है।
गड्ढों से मौत का हाइवे
तलासरी चेकपोस्ट से लेकर दहिसर चेकनाक तक हाइवे पर जगह-जगह गड्ढे मौत को न्योता दे रहे हैं। मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, इस हाइवे पर अब तक करीब 6 लाख लोग हादसों में अपनी जान गंवा चुके हैं। चारोटी नाके के पास हुए उस भीषण हादसे को भला कौन भूल सकता है, जिसमें उद्योगपति सायरस मिस्त्री की मौत हो गई थी।
सिंडिकेट बन चुका है सिस्टम
हाइवे निर्माण और मरम्मत के नाम पर होने वाली यह लूट एक “सिस्टमेटिक सिंडिकेट” का रूप ले चुकी है। ऊपर से नीचे तक हर स्तर पर भ्रष्टाचार की बंदरबांट हो रही है। नियम-कानून और अनुशासन अधिकारियों के लिए महज कागजी बातें रह गई हैं।
जनता की मांग—कब होगी निष्पक्ष जांच?
स्थानीय लोगों और पीड़ित परिवारों का आरोप है कि यह भ्रष्टाचार केवल सड़क खराब होने तक सीमित नहीं, बल्कि लाखों जानें लेने वाला “मौत का जाल” बन चुका है। प्रभावित परिवारों ने केंद्र सरकार से मांग की है कि इस पूरे मामले की गहन जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
सरकार कब लेगी संज्ञान?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि—क्या केंद्र और राज्य सरकार इस भ्रष्टाचार के सिंडिकेट पर लगाम लगाएंगी, या फिर NH-48 पर मौत का तांडव यूं ही जारी रहेगा और यमराज 24×7 हाइवे पर ड्यूटी बजाते रहेंगे?