बाँटी कहाँ माँ सरस्वती ने….!
यहाँ बुद्धि-विवेक सबको समभाव में
माँ लक्ष्मी भी…हमेशा ही दिखीं….
कुछ अलग से बर्ताव में….
यहाँ किसी को बनाया राजा…तो…
किसी को रखा हमेशा ही अभाव में..
माँ दुर्गा ने भी यहाँ….!
किसी को बनाया कोमल….तो…
किसी को रखा हमेशा….
मूँछों की ताव में…..
माँ सन्तोषी ने भी….!
बुना यहाँ….भरपूर मायाजाल….
दिखता नहीं सन्तोष यहाँ किसी में
चाहे भरा-पूरा हो….या फिर….
हो कोई एकदम कंगाल….
देखो तो सही प्यारे….!
माँ अन्नपूर्णा ने भी…अनायास ही…
कभी भर दिया खजाना किसी का…
फिर वहीँ पर किसी को बना दिया,
उस खजाने का दावेदार….या….
किसी को बना दिया पहरेदार…
माँ गंगा भी…लिए जलराशि अपार..
कुछ अपनों को ही…..!
भरती है अपने अँकवार….
यहाँ तक कि….धरती माँ भी…!
नहीं बनाई यहाँ सबको,
बराबर-बराबर का हकदार….
गौ माता का भी यहाँ….!
अपना अलग सा पैमाना है….
भले ही गुणगान उसका,
गाता सारा जमाना है….
इतना ही नहीं मित्रों…
स्वयं जन्म देने वाली माँ भी….!
अपने ही सन्तानों में,
अक्सर ही….नहीं कर पाती है….
बराबर की हिस्सेदारी….
मित्रों….ऐसे विभेद के कारण ही….
पैदा हुई है….जहाँ में दुनियादारी…
पता नहीं मुझको प्यारे….!
इसकी दुनिया को थी कोई दरकार
या फिर….इसी से दुनिया भर में…
ईश्वर को फैलानी थी..माया बेशुमार
इस बिंदु पर भी….!
नहीं कर पाऊँगा कोई टिप्पणी…
कि क्यों मिलती है यहाँ…किसी को..
सूखी रोटी चुपड़ी या फिर खिचड़ी
और किसी को…आप ही मिलती है
बनी बनाई मलाई-खीर और रबड़ी..
पर प्यारे इतना जरुर कहना चाहूँगा
विद्रोही मन…..यह सोचता जरूर है
कि..जब ममतामयी के दरबार में ही
व्याप्त है….इतनी घोर विषमता…
फिर तो बेमानी ही है….!
अपेक्षा करना मनुष्य से,
यह कि….समाज में हो समता….
वावजूद इसके भी…इस बात की..
कोशिशें जरूर करता है मनुष्य..कि..
बना कर किसी को अपना गुरू….!
या बन कर किसी का शिष्य…
बेहतर से बेहतर बनाया जाय…!
दुनिया में मनुष्य का भविष्य….
अब ऐसे में प्यारे…..!
विचार आप खुद करो कि…
कहीं समाज में….नाहक ही तो नही
बदनाम और गुनहगार….!
घोषित कर दिया गया है….मनुष्य….
विचार आप खुद करो कि…
कहीं समाज में….नाहक ही तो नही
बदनाम और गुनाहगार….!
घोषित कर दिया गया है….मनुष्य….
रचनाकार….
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त,लखनऊ