जप, तप, ध्यान का अद्भुत संगम है शारदीय नवरात्रि

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नवरात्रि में छिपा है अद्भुत वैज्ञानिक कारण

संवाददाता पंकज जयसवाल

जौनपुर शाहगंज।
भारत प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों और तपस्वियों की भूमि रहा है। हमारे मनीषियों ने हजारों वर्ष पहले जिन सत्यों की खोज की, आज आधुनिक विज्ञान भी उन्हें स्वीकारने के लिए बाध्य हो रहा है। नवरात्रि पर्व इन्हीं आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रहस्यों का अद्भुत संगम है।

नवरात्रि का आध्यात्मिक आधार:

एक प्राचीन कहावत है – “शुद्ध मन में ही शुद्ध विचारों का प्रवाह होता है।” नवरात्रि इसी शुद्धता का प्रतीक पर्व है। हमारे शास्त्रों में वर्ष भर में चार नवरात्रियों का उल्लेख मिलता है – दो प्रत्यक्ष (चैत्र और आश्विन) तथा दो गुप्त नवरात्रियाँ। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से महानवमी तक और ठीक छह माह बाद आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से महानवमी तक नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

‘नवरात्रि’ शब्द का अर्थ है – विशेष रात्रि। हमारे ऋषि-मुनियों ने दिन की अपेक्षा रात्रि को अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि हमारे अधिकांश पर्व और साधनाएँ रात्रि में सम्पन्न की जाती हैं।

इन नौ दिनों में साधक व्रत, संयम, भजन-पूजन, योग-साधना और मंत्र-जप के माध्यम से आत्मशक्ति और मानसिक शक्ति का संचय करते हैं। कुछ साधक पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर बीज मंत्रों का जाप करते हुए विशेष सिद्धियों की प्राप्ति का प्रयास भी करते हैं।

वैज्ञानिक महत्व:

हमारे मनीषियों ने नवरात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्म रूप में समझाया है, जिसे आधुनिक विज्ञान भी मान्यता देता है।

ध्वनि तरंगों का रहस्य:

दिन के समय सूर्य की किरणें ध्वनि और रेडियो तरंगों के प्रवाह में बाधा उत्पन्न करती हैं। इसी कारण दिन में दूरस्थ रेडियो स्टेशनों को पकड़ना कठिन होता है, जबकि रात्रि में वे स्पष्ट सुने जा सकते हैं। यही सिद्धांत मंत्र-जप पर भी लागू होता है। रात्रि में विचार-तरंगें और मंत्र-शक्ति अधिक प्रभावी होती हैं।

ऋतु परिवर्तन और स्वास्थ्य:

नवरात्रि का आयोजन ऋतु-संधि के समय होता है, जब मौसमी बीमारियाँ बढ़ने की संभावना रहती है। ऐसे में सात्विक आहार, संयम और उपवास शरीर को शुद्ध करने के साथ ही प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। यह एक प्रकार का आंतरिक शुद्धिकरण अभियान है, जो हर छह माह पर चलता है।

नौ दिनों का प्रतीकात्मक महत्व:

मानव शरीर को नौ द्वारों वाला मंदिर कहा गया है। इन नौ दिनों में इन इन्द्रियों की शुद्धि, अनुशासन और सामंजस्य स्थापित करने का अभ्यास कराया जाता है, ताकि शरीर और मन पूरे वर्ष संतुलित और क्रियाशील बने रहें।

नवरात्रि केवल देवी पूजा का पर्व नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक साधना और वैज्ञानिक दृष्टि से आत्म-शुद्धि का अद्भुत संगम है। सात्विक आहार और संयमित जीवनशैली से शुद्ध मन और उत्तम विचार जन्म लेते हैं। शुद्ध मन-मंदिर में ही ईश्वर की शक्ति स्थायी रूप से निवास करती है।

इस प्रकार, नवरात्रि हमें यह संदेश देती है कि आत्मसंयम, साधना और स्वच्छ जीवन ही दिव्य शक्ति तक पहुँचने का वास्तविक मार्ग है।

उपरोक्त दी गयी सारी जानकारी कथा, प्रवचन,विभिन्न पुस्तकों एवं सोशलमीडिया से एकत्र की गई है। राजकुमार अश्क़

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