मत करो.. पुतलों से प्यार…/

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नुमाईस मैदान के मेले से खरीदकर
अभी-अभी घर आए ही थे….
डॉक्टर,वकील,पुलिस,नेता…और…
मास्टर साहब के संग पत्रकार भाई
आते ही शुरू हो गया था घर में शोर
मच गया था हल्ला-गुल्ला,बवण्डर…
सभी कह रहे थे….!
हमने अपना पेट काटा,
नहीं खाया चाट-पकौड़ी….
नहीं खाया कोई बरफी-रसगुल्ला…
तभी तो मुश्किल से घर आया है,
हम सब का प्यारा सा पुतला….
लड़ रहे थे…एक दूसरे से सभी…
चुन्नू-मुन्नू और रंगा-बिल्ला….
बताने को.…यकीन दिलाने को…
कि क्या-क्या कर सकता है….?
उनका अपना बागड़बिल्ला….
इसी बीच जाने क्या…?
व्यंग्य कोई कुछ ऐसा बोला…
कि आपस में लड़ने को….!
हर कोई अपने हाथों में,
लिए तैयार खड़ा था….
अपना-अपना प्यारा पुतला…
सभी एक दूसरे की मन से….!
कर रहे थे भरपूर खिंचाई….
जैसे पुतलों की आत्मा ही,
उनमें हो उतर आयी…
इक दूजे की करतूतों को लेकर…!
सबकी हो रही थी…आपस में लड़ाई,
किसी ने नैतिकता खूब गिनाई तो…
किसी ने अपनी मोटी खूब कमाई…
किसी ने करी सदाचार की गुहार तो,
किसी ने करी कानूनी बौछार….
किसी ने दी डण्डे की दुहाई…तो…
किसी ने छपाई को बताया,
हर एक मर्ज़ की दवाई….
किसी ने गरमा-गरम माहौल में,
राजनीति अपनी खूब चमकाई…
तकरार आपस की ज्यादा बढ़ने पर,
पारा मालिकान के चढ़ने पर….
पुतले सारे हवा में उड़-उड़कर….
टकराये और टूटने लगे…संग इसके..
दिल…नादान दीवानों के टूटने लगे…
प्यारे मित्रों….!
अब कौन बताए इनको….?
कि ये पुतले तो बिकने के लिए…
और….टूटने के लिए ही होते हैं….
तैयार विधाता के हाथों से हों…
या फिर….हमारे हाथों से….!
फिर….बेवजह ही कर रहे हैं….
इन पुतलों को लेकर…..
ये आपस में रार-तकरार….
संग इसके कौन बताये इनको…कि..
इस माया जगत में….!
लोग पुतला बनने को भी हैं तैयार
यहाँ तक कि….करके….
अलग-अलग सा अपना श्रृंगार…
और…यहाँ कोई संदेह नहीं कि….!
ये पुतले….और इनका गुरूर….
टूटते भी हैं….!
यहाँ सौ-सौ बार….
इसलिए कहता हूँ प्यारे….!
मानो तुम मेरी एक बात ….
मत करो….कत्तई मत करो…!
यहाँ तुम पुतलों से प्यार….
मत करो….कत्तई मत करो…!
यहाँ तुम पुतलों से प्यार….

रचनाकार…..
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ

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