नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि आपराधिक कानून का इस्तेमाल निजी दुश्मनी या प्रतिशोध के लिए नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि हाल के वर्षों में कुछ लोग अपने निहित स्वार्थ और अप्रत्यक्ष एजेंडे को पूरा करने के लिए आपराधिक न्याय तंत्र का दुरुपयोग कर रहे हैं, जिस पर अदालतों को सख़्त निगरानी रखनी होगी।
पीठ ने यह टिप्पणी धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के आरोपों में दर्ज एक एफआईआर को रद्द करते हुए की। मामला 2023 का है, जिसमें हिमाचल प्रदेश पुलिस ने दो लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420 समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज किया था। शिकायतकर्ता ने करीब पांच साल की देरी से प्राथमिकी दर्ज कराई, लेकिन वह इस देरी का कोई संतोषजनक कारण नहीं बता सका।
अदालत ने कहा कि शिकायत धोखाधड़ी के अपराध के मूल तत्वों को पूरा नहीं करती और इस आधार पर मुकदमे को जारी रखना अभियुक्तों के लिए केवल “अनुचित उत्पीड़न” साबित होगा। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ एफआईआर, बल्कि चार्जशीट और आगे की सभी कार्यवाही को भी समाप्त करने का आदेश दिया।
न्यायालय ने चेतावनी दी कि अगर आपराधिक कानून को निजी लड़ाइयों का हथियार बनने दिया गया, तो इसका समाज के ताने-बाने पर गंभीर असर पड़ेगा। इसलिए अदालतों का दायित्व है कि ऐसी कोशिशों को शुरुआत में ही रोक दिया जाए।