जौनपुर।
पितृपक्ष का समय पूर्वजों की स्मृति और उनके प्रति श्रद्धा समर्पण का अवसर है। ज्योतिष शिरोमणि एवं मौसम विज्ञानी डॉ. दिलीप कुमार सिंह का कहना है कि हमारे पितर केवल तीन अंजलि जल से ही संतुष्ट हो जाते हैं। यदि किसी कारण से अन्य व्यवस्था संभव न हो, तो घर, कुएं, तालाब, सरोवर या किसी जलकुंड के पास दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों का आवाहन करते हुए तीन बार जलांजलि देनी चाहिए। यही सबसे उत्तम विधि मानी गई है।
कैसे करें तर्पण?
सुबह स्नान करके शुद्ध या भीगे कपड़े पहनें।
हाथ में जल, दूध, गंगाजल, काला तिल, अक्षत और पुष्प लेकर तीन बार जलांजलि दें।
जल अर्पण अंगूठे की ओर से होना चाहिए।
मंत्र उच्चारण करें –
“ॐ पितृभ्यः स्वाहा” या “सर्वे पितरः प्रसन्नं भवन्तु”।
क्या सचमुच पितरों तक पहुंचती है जलांजलि?
डॉ. सिंह कहते हैं – “बहुत से लोग शंका करते हैं कि क्या पितरों तक यह जल पहुंचता है? तो समझिए, जैसे अमेरिका से टेलीविजन सिग्नल भारत तक आते हैं या दूरबीन से अरबों प्रकाश वर्ष दूर तारे दिखाई देते हैं, वैसे ही तर्पण का सूक्ष्म तत्व पितरों तक अवश्य पहुंचता है।”
साधना का वैज्ञानिक आधार:
श्राद्ध के दिनों में सादा भोजन ही उचित है।
आलू, प्याज, लहसुन, तामसिक भोजन, तैलीय और मांसाहार पूरी तरह वर्जित हैं।
ऋतु परिवर्तन के कारण यह परहेज स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी है।
15 दिनों तक सादा भोजन और संयम से मनुष्य 90% रोगों से बच सकता है।
भ्रम और कठोरता की आवश्यकता नहीं
पितरों को तेल-मसाले वाला भोजन नहीं दिया जाता।
पूजा-पाठ में शुद्ध मन और सच्ची श्रद्धा सबसे महत्वपूर्ण है।
रामायण और महाभारत में भी भगवान श्रीराम, माता सीता और पांडवों ने केवल नदी या सरोवर में जल अर्पण कर पितरों का तर्पण किया था।
पितृ विसर्जन:
आश्विन अमावस्या को पितरों को अंतिम विदाई दी जाती है। इस दिन तर्पण करके पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
विशेष बातें:
मृत्यु की तिथि ज्ञात हो तो उसी दिन तर्पण करना चाहिए।
यदि तिथि ज्ञात न हो तो भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक किसी भी दिन श्राद्ध किया जा सकता है।
रोजाना कुत्ता, गाय, कौवा, चींटी और मछली को अन्न दान करने की परंपरा है, इसे पंचबली कहा जाता है।
सामर्थ्य हो तो सुपात्र को अन्न, धन या गुप्त दान भी करें।
सनातन धर्म का संदेश:
डॉ. सिंह ने कहा कि सनातन धर्म सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक धर्म है। इसमें कठोरता नहीं बल्कि सहजता और लचीलापन है। पितरों को श्रद्धा से याद करने से जीवन में सुख-समृद्धि, संतान सुख और आरोग्यता प्राप्त होती है।
डॉ. दिलीप कुमार सिंह
डिप्टी चीफ डिफेंस काउंसिल,
ज्योतिष शिरोमणि एवं निदेशक,
अलका शिप्रा वैष्णवी ज्योतिष मौसम पूर्वानुमान एवं विज्ञान अनुसंधान केंद्र, जौनपुर।
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