पूर्वांचल लाइफ जौनपुर
मॉस्को (रूस)।
भारतीय संस्कृति और आस्था की अनूठी छटा रूस में भी देखने को मिली, जब प्रिया मिश्रा ने बड़े हर्ष और उल्लास के साथ गणेश उत्सव का आयोजन किया। विदेश की धरती पर बसे भारतीयों ने गणपति बप्पा की स्तुति कर न केवल अपनी परंपरा को जीवित रखा, बल्कि रूसी समाज के सामने भारत की सांस्कृतिक धरोहर को भी प्रदर्शित किया।
आस्था और परंपरा का संगम:
गणेश उत्सव, जिसे “विघ्नहर्ता” और “सिद्धिविनायक” की आराधना का पर्व माना जाता है, इस बार रूस में विशेष आकर्षण का केंद्र रहा। प्रिया मिश्रा और उनके सहयोगियों ने गणपति प्रतिमा की स्थापना कर पारंपरिक विधि से पूजा-अर्चना की। दूर्वा, मोदक और नारियल की सुगंध ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया।
भारत से रूस तक गणपति का जयकारा:
गणपति बप्पा की आरती और “गणपति बप्पा मोरया” के जयकारों से पूरा परिसर गूंज उठा। खास बात यह रही कि इस उत्सव में भारतीयों के साथ-साथ रूसियों ने भी हिस्सा लिया और भारतीय रीति-रिवाजों को करीब से समझने का अवसर पाया।
संस्कृति का उत्सव, समाज की एकता:
गणेशोत्सव केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं रहा, बल्कि यह कला, संगीत और संस्कृति का भी मंच बना। बच्चों ने नृत्य और भजन प्रस्तुत किए, वहीं महिलाओं ने पारंपरिक श्रृंगार के साथ मंगलगान किया। इस आयोजन ने विदेश में रह रहे भारतीयों को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम किया।
पर्यावरण संरक्षण पर संदेश:
प्रिया मिश्रा ने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए मिट्टी की प्रतिमा का उपयोग किया और लोगों से भी “इको-फ्रेंडली गणेशोत्सव” मनाने की अपील की। उनका कहना था कि “गणपति बप्पा खुशियों के देवता हैं, और खुशियाँ तभी स्थायी होंगी जब हम प्रकृति को सुरक्षित रखेंगे।”
समापन: अगले बरस की प्रतीक्षा:
अनंत चतुर्दशी के अवसर पर गणेश प्रतिमा का विधिवत विसर्जन किया गया। शोभायात्रा के दौरान गगनभेदी नारों ने सभी को भावुक कर दिया –
“गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ…”.
संदेश:
यह उत्सव केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की जीवंत झलक था, जिसने रूस की धरती पर एकता, उल्लास और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया।