जर्जर भवनों में गूंज रही भविष्य की पाठशाला, खतरे में नौनिहालों की जिंदगी

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धनंजय राय ब्यूरो पूर्वांचल लाईफ
भदोही। जिले में शिक्षा के नाम पर करोड़ों की योजनाएं और कायाकल्प मिशन के तहत खर्च हुए लाखों रुपये के बावजूद कई स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों की जान हर दिन खतरे में पड़ रही है। जर्जर भवनों में कक्षाएं चल रही हैं, छतों से प्लास्टर गिर रहे हैं, और बरसात में पानी टपकने के साथ-साथ हादसे का डर सताता है।

शासन की नीतियों और शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता के बावजूद ज़मीनी हकीकत अलग तस्वीर दिखा रही है। जिन विद्यालयों में कायाकल्प योजना के अंतर्गत रंगरोगन, टाइल्स और बाउंड्री वॉल जैसी सुविधाएं दी गईं, वहां मूलभूत सुरक्षा की अनदेखी चौंकाने वाली है।

20 साल में जर्जर, 70 साल की उम्र के दावे फेल

कागज़ों में किसी भी विद्यालय भवन की उम्र 70 साल तक की मानी जाती है, मगर भदोही के कई स्कूल 20 साल में ही खस्ताहाल हो गए हैं। छतों से सीमेंट के चप्पड़ गिर रहे हैं, दीवारें सीलन और दरारों से भरी हुई हैं।

जमीनी हकीकत: चार विद्यालयों की स्थिति चिंताजनक

कंपोजिट विद्यालय टिकैतपुर:-
बच्चे: 277 नामांकित
स्थिति: 2006 में बना भवन, तीन कमरे, जिनमें एक की छत बेहद जर्जर।
पहले यह कक्षा थी, अब शिक्षक कार्यालय के रूप में उपयोग कर रहे हैं, लेकिन बच्चों का आना-जाना लगा रहता है।
सफाई, शौचालय, पानी आदि ठीक हैं, पर मरम्मत की कोई व्यवस्था नहीं।
प्रधानाध्यापक ने कई बार विभाग को लिखा, लेकिन बजट का हवाला देकर टाल दिया गया।

प्राथमिक विद्यालय बहुतरा खुर्द:-
बच्चे: 94 नामांकित
समस्या: अधूरी चारदीवारी, गेट तक नहीं लगा।
परिसर में मवेशियों, कुत्तों और बंदरों की आमद से बच्चों की सुरक्षा संकट में।
प्रधानाध्यापक रामचंद्र का कहना है कि चारदीवारी का कार्य प्रगति पर है।

प्राथमिक विद्यालय गोड़ापार:-
बच्चे: 52 नामांकित
स्थिति: एकमात्र कक्ष 2005 में बना, छत बुरी तरह जर्जर।
बरसात में टपकता है, प्लास्टर गिरता है।
बच्चों की जान जोखिम में, लेकिन फिलहाल यही कक्षा प्रयोग में है।

प्रधानाध्यापक ने विभाग को जानकारी दी है, कोई कार्रवाई नहीं।

कंपोजिट विद्यालय दलापुर-
बच्चे: 205 नामांकित
समस्या: सात कमरों में दो की छत बेहद खराब स्थिति में।
फर्नीचर की भी भारी कमी, कई छात्र जमीन पर बैठते हैं।
साफ-सफाई, शौचालय, पानी और चारदीवारी की स्थिति ठीक है।
प्रधानाध्यापक ने बताया कि जर्जर छत को लेकर रिपोर्ट दी गई है।

शिक्षा व्यवस्था की गंभीर खामियां:-
जहां एक ओर शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा भारी-भरकम बजट स्वीकृत हो रहा है, वहीं दूसरी ओर इन स्कूलों की खस्ताहाल स्थिति विभागीय उदासीनता को उजागर करती है। शिक्षा के मंदिर अगर खुद ही ढहने को तैयार हों, तो वहां ज्ञान का दीपक कैसे जलेगा?

जिला शिक्षा अधिकारी का पक्ष:
“जिन विद्यालयों की छतें क्षतिग्रस्त हैं या चारदीवारी अधूरी है, उन्हें चिह्नित किया जा रहा है। कंपोजिट ग्रांट से मरम्मत की जाएगी। सभी प्रधानाध्यापकों को भवन की स्थिति की रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए हैं। बच्चों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है।”

निष्कर्ष:-
कायाकल्प के रंगीन पोस्टरों और योजनाओं की चमक के पीछे भदोही जैसे जिलों की सच्चाई छुपी हुई है। जब तक भवनों की मजबूती और बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती, तब तक शिक्षा सुधार का दावा खोखला ही रहेगा।

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