पंकज सीबी मिश्रा/पूर्वांचल लाईफ
जौनपुर : टीवी और सोशल मीडिया पर सेलिब्रेटी कपल के बीच तलाक और संबंध विच्छेद की खबरें लगातार ट्रेंडिंग में है। ऐसे में हम समाज को क्या परोस रहें ! हमारा सांस्कृतिक मंत्रालय और सरकारें क्या कर रही! मनोवैज्ञानिक काउंसलर क्या देश से पलायित हो गए ! न्याय व्यवस्था में कही घुन तो नही लग रहा! अथवा सांस्कृतिक जड़े भीतर ही भीतर खोखली होती जा रही ! ऐसे तमाम प्रश्न अब दिमाग में कौधने चाहिए। न्याय प्रणाली में अभिव्यक्ति की आजादी की व्यवस्था ने काफी हद तक ऐसे मामलों में वृद्धि करा दी है और फिर समानता के अधिकारों की व्याख्या करते करते यह किस मोड पर आ गए हैं ? जहां महिलाओं को मुख्य धारा में लाने के अंधदौड़ और भेड़चाल में हमने अपने मूल वैदिक अवधारणा को ही खतरे में डाल दिया है। महिलाओं को नौकरी कराने और आत्मसम्मान बनाने के चक्कर में डालकर उन्हें आगे बढ़ाने के लिए जो ताना बाना बुना गया आज उसका दुष्परिणाम है कि परिवार तेजी से टूट रहें। बच्चे जिन्हे पाल पोस कर अपना पेट काट कर मां बाप इतना योग्य बनाते है वह विवाह होते ही अपनी नौकरीपेशा पत्नी के साथ परिवार से अलग हो जाते है, और अंतिम परिणाम हर घर की कहानी है। कुछ प्रतिशत अपवादों को छोड़ दे तो हर परिवार में जहां पति पत्नी दोनो नौकरीसुदा है, वहां सब कुछ ठीक नहीं। खैर लेख का मंतव्य महिलाओं का अपमान नही , केवल समाज को वह तथ्य दिखाना है जो उदाहरण के तौर पर हम आस – पास देख रहें। मेरे लेख का यह उद्देश्य कदापि नहीं कि महिलाओं को समाज में भागीदारी से रोका जाए अपितु उन्हे अपने भारतीय संस्कृति से परिचित कराया जाए। आप ही बताए क्या अब यही होगा हमारे समाज में ? एक तरफ तो पत्नी प्रेमी से मिल कर पति का गला काट रही और सरकारें लिव इन को मान्यता दे रही हैं, क्या देश की आजादी से पूर्व भारतीय चिंतन और संस्कृति में तलाक अर्थात विवाहोत्तर संबंध विच्छेद जैसे शब्द का नामों निशान था ! किन्हीं किन्हीं संदर्भों में वैध सामाजिक कारणों के साथ परित्याग शब्द की चर्चा अवश्य हुई है पर वह अंशकालिक होता था। हम सभी जानते है कि तलाक शब्द 1956 में कानून के लिए लाया गया जिसका उद्देश्य प्रताड़ित हो रही महिलाओं को न्याय दिलाना था। पर इसे अपने अपने धर्म के आधार पर अपनाकर, सामाजिक विषमता का सूत्रपात किया गया। पश्चिमी सभ्यता और इस्लामिक जगत से तलाक हिन्दू धर्म में गोद ले लिया गया। आधुनिकता के चक्कर में इक्कीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में ही हम जिस मकाम तक आ गए हैं, वहां से वापस लौटना मुमकिन नहीं लगता। यही वो दौर था जब लिव इन को कानूनी रूप से मान्यता मिल गया। बड़े शहरों में लिव इन में रहना आम होता जा रहा है। अभिव्यक्ति की आजादी के अंतर्गत लिव इन रिलेशनशिप को बेहद सरल बना दिया गया है। तो क्या आने वाले भविष्य में भारत की परिवार इकाई और विखंडित होगी ? चित्रा त्रिपाठी वाले मामले सहित अनेक मामलों में तलाक लेने वाले दंपत्ति अलग तो होते हैं , लेकिन बच्चा मिलकर पालने को तैयार हो जाते हैं, तो क्या सामाजिकता की व्याख्या और भारतीय संस्कृति की अक्षुणता का ढिढोरा हम इस तरह पीट पाएंगे! किसी की निजी जिंदगी को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए, लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में हम स्वयं ही अपने आप को एक्स जैसे ट्विटर हैंडल पर परोस देते है और फिर ऐलान। सोशल मीडिया एक्सपर्ट कहते है कि वैसे भी जो लोग जनता से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत हैं उनका कुछ छिपाने पर भी छिपा नहीं रहा सकता। खासकर भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में तो बिल्कुल भी नहीं। मशहूर टीवी एंकर चित्रा त्रिपाठी ने एक बेटा होते हुए भी हिंदी खबर के संस्थापक पति से 16 वर्ष का साथ छोड़ दिया। विवाह बंधन टूटने का ऐलान भी उन्होंने स्वयं सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर किया। अनेक बड़े चैनलों पर शानदार पत्रकार की भूमिका निभा रहीं गोरखपुर निवासी चित्रा आजकल एबीपी न्यूज में उपाध्यक्ष पद पर आसीन हैं। उनका वेतन भी करीब 20 लाख रुपया महीना बताया जाता है। उनके पति पत्रकार हैं और अच्छा ही कमाते होंगे। घर में एक प्यारा सा बच्चा होते हुए भी तलाक क्यों हुआ , कारण नहीं बताया गया। भारत की पहचान जिस परिवार सिस्टम के कारण पूरे विश्व में थी, वही टूट रहा है , बिखर रहा है। नए भारत के अनेक स्वरूपों में यह भी नया स्वरूप है। हमारे देश की विवाह परम्परा इतनी मशहूर है कि अनेक विदेशी जोड़े भारत आकर वैदिक मंत्रों के साथ दाम्पत्य सूत्र बंधन में बंधते हैं। भोलेनाथ की नगरी वाराणसी में ऐसे विवाह करने नवयुगल विदेशों से आते हैं और हम भारतीय जो सात जन्मों तक अथवा हर जन्म में साथ रहने वादा निभाने की कसमों के साथ सात वचन देते हैं, सप्तपदी में सात कदम सात चलते हैं, चार अथवा सात फेरे अग्नि को साक्षी मानकर लेते हैं, इस तरह कैसे जुदा हो सकते हैं ? सच कहें तो तलाक़ नाम का शब्द भी हमारे परिणय संस्कार की सूची अथवा हिन्दू डिक्शनरी में शामिल नहीं है। अपने सोलह संस्कारों में सबसे प्रमुख दाम्पत्य संस्कार का इस तरह गला मत दबाइए। याद रखिए सनातन जीवन पद्धति में वेद, पुराण, वर्ण, आश्रम और संस्कार हमारे जीवन दर्शन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग हैं। इनसे छेड़खानी करेंगे तो सांस्कृतिक और चारित्रिक रूप से नष्ट हो जाएंगे।
मुद्दा: मूल सिद्धांतों और संस्कृति को तिलांजलि देता हमारा समाज
