“ग़ज़ल”
पूर्वांचल लाइफ/अश्वनी तिवारी
आख़िर मुझे नींद आने लगी है
दुनिया तमाशा दिखाने लगी है
जिन्हें भूल करके चला आया था मैं
यादें उन्हीं की बुलाने लगी हैं
जिनसे मरासिम का रस्ता नहीं था
क्यूं बातें उन्हींकी रिझाने लगी हैं
कल तक जिन्हें था अपनों से परदा
ग़ैरों की रातें सजाने लगी हैं
खाईं थी कस्में जिन्हें भूलने की
यादें उन्हीं की सताने लगी है
तालीम ने जो सिखाया नहीं था
सबक ज़िन्दगी वो सिखाने लगी है
— ग़ज़लकार संतोष कुमार झा,
सीएमडी कोंकण रेलवे