गमों की अमावस को, हम पूनम की रात करे।तिल-तिल जलते लोगों पर, हम ठंडी बरसात करे।।

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ना हो नफरत, ना हो झगडा, ना कोई हिंसा तांडव ।
हर दिल में मीठा-मीठा सा, प्यारा वो जज्बात भरे।।

धरती नाचे, अंबर नाचे और सारी सृष्टि झूमें ।
कर्मों की मीठी खुशबू से, खुशियों की सौगात करें।।

अत्याचार और अनाचार के रेगिस्तानी जंगल में ।
सद्भाव की गंगा से, हम पावनता की बात करें।।

दहशत , चिन्ता , हिंसा , झगडे की ना हो ये काली राते,
प्यार और विश्वास से, जग में फिर उजला प्रभात करे ।।

आशा “पंकज” मूँदडा
पाली (राजस्थान)

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