ना हो नफरत, ना हो झगडा, ना कोई हिंसा तांडव ।
हर दिल में मीठा-मीठा सा, प्यारा वो जज्बात भरे।।
धरती नाचे, अंबर नाचे और सारी सृष्टि झूमें ।
कर्मों की मीठी खुशबू से, खुशियों की सौगात करें।।
अत्याचार और अनाचार के रेगिस्तानी जंगल में ।
सद्भाव की गंगा से, हम पावनता की बात करें।।
दहशत , चिन्ता , हिंसा , झगडे की ना हो ये काली राते,
प्यार और विश्वास से, जग में फिर उजला प्रभात करे ।।
आशा “पंकज” मूँदडा
पाली (राजस्थान)