पूर्वांचल लाईफ/पंकज कुमार मिश्रा
जौनपुर ! आमतौर पर हमारे आयुर्वेद में बहुत से ऐसे पेड़-पौधे पाए जाते हैं जिनसे कई बीमारियों को ठीक किया जाता है। जी हां इस पौधे का सुनकर आपको अजीब लग सकता है। भारतीयों द्वारा इसे सत्यानाशी कहते हैं और हमारे जौनपुर में इसे भटकटैया कहते है। सत्यानाशी नाम के पौधे की बात हो रही है जिसको अंग्रेजी में इसे ‘मैक्सिकन प्रिकली पॉपी’ कहा जाता है। यह पौधा आमतौर पर किसी भी जमीन,नदी,सड़क के किनारे आसानी से मिल जाता है। तो आइए आज हम आपको इसके फायदे बताते हैं। गर्मियों के दिनों में खेतों में मेड पर खुद से उगने वाला यह पौधा जिसे सत्यानाशी और साइंस में अर्जिमोन मैक्सिकाना कहते है इसका उपयोग भी अद्भुत है। यह पौधा स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है। इसकी जड़ को पानी में उबालकर पीने से खांसी और सांस की समस्याएं में आराम मिल सकता है। सत्यानाशी के तेल में गिलोय का जूस मिलाकर पीने से पीलिया जैसे रोग से मुक्ति मिलती है। इसके दूध में घी मिलाकर पीने से पेट दर्द में भी राहत मिल सकती है। बिहार और यूपी में इसे कई नाम से जाना जाता है। इसके पीले फूल लोगों को खूब आकर्षित करते हैं। गेहूं और सरसों की फसल में यह खुद-ब-खुद उग आता है। इसे भरभार, घमोई, सत्यनाशी, भट कटेया और न जाने किन-किन नाम से जाना जाता है। देश के ज्यादातर हिस्से में अगर किसी को सत्यानाशी कहा जाता है तो उसका मतलब काम खराब करने वाले व्यक्ति से होता है। ऐसा व्यक्ति जो किसी काम का ना हो, जो हर काम बिगाड़ता हो यानी जिसका कोई फायदा ना हो, ऐसे व्यक्ति को सत्यानाशी कहा जाता है। लेकिन एक पौधा ऐसा भी है, जो कैसी भी जमीन में, कहीं भी उग जाता है और उसका नाम सत्यानाशी पौधा है। इस पौधे में चारों ओर कांटे होते हैं। इसमें पीले रंग के फूल खिलते हैं। इन फूलों में छोटे-छोटे बीज होते हैं। इसमें एंटीमाइक्रोबियल, एंटीडायबिटी, एनाल्जेसिक, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीस्पास्मोडिक, एंटीऑक्सिडेंट पाएं जाते हैं। ये पौधा एमपी के भोपाल में लगभग हर जगह पाया जाता है। इस पौधे को आपने अक्सर सड़क के किनारे, सख्त बंजर जमीन में, पथरीली जगहों पर, कड़ाके की धूप वाली जगहों या सूरज की रोशनी ना पहुंचने वाली यानी हर जगह पर देखा हो सकता है। शोधछात्र और जनपद के पत्रकार पंकज कुमार मिश्रा ने और जानकारी देते हुए बताया कि सत्यानाशी पौधे में कई तरह के औषधीय गुण होते हैं। यह पौधा ज्यादातर हिमालयी क्षेत्रों में उगता है। इस पौधे में बहुत ज्यादा कांटे होते हैं। इसके पत्ते, शाखाओं, तने और फूलों के आसपास हर जगह कांटे होते हैं। इसके फूल पीले रंग के खिलते हैं, जिनके अंदर बैंगनी रंग के बीज पाए जाते हैं। अमूमन किसी पौधे के फूल और फल तोड़ने पर सफेद रंग के दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है, लेकिन सत्यानाशी के पौधे से फूल तोड़ने पर पीले रंग के दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है। पीले रंग के दूध जैसा पदार्थ निकलने के कारण इसे स्वर्णक्षीर भी कहा जाता है। सत्यानाशी के पौधे को स्वर्णक्षीर के अलावा उजर कांटा, प्रिकली पॉपी, कटुपर्णी, मैक्सिन पॉपी समेत कई नामों से पहचाना जाता है। अमूमन किसान इसे बेकार पौधा मानकर काटकर फेंक देते हैं। वहीं, आयुर्वेद में इसे औषधि की तरह इस्तेमाल कर दवाइयां बनाई जाती हैं, जिनसे कई रोगों का इलाज किया जाता है।सत्यानाशी पौधे का हर हिस्सा यानी पत्ते, फूल, तना, जड़ और छाल आयुर्वेद में बेहद काम के माने जाते हैं । सत्यानाशी अस्थमा के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है। इसे पानी या दूध में डालकर लिया जा सकता है। इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से भी अस्थमा में काफी फायदा मिलता है। इसके इस्तेमाल से पुरूषों में होने वाली गुप्त बीमारी, धातुरोग,नपुसंकता, वीर्य से संबंधित बीमारियां दूर होती हैं। सत्यानाशी पुरूषों के शुक्राणुओं को बढ़ाने में मददगार साबित होता है। पेशाब करने में यदि समस्या आ रही है और आपको जलन हो रही है तो सत्यानाशी का काढ़ा बनाकर पीने से जलन जैसी समस्याओं से राहत मिलेगी। यदि आपके शरीर में कहीं सफेद दाग है तो आप सत्यानाशी को फूल को पीसकर दाग वाले हिस्से पर लगा सकते हैं। इसके इस्तेमाल से शरीर में सफेद दाग कम होते हैं।