यहाँ सब अधूरा छूटता है
साथ
बात
मुलाकात
घर
रिश्ते
…
अधूरे ही चले जाना है…
कोई पूर्ण नहीं
अगर कह रहा
या दिखा रहा…
तो वह छलावा है…
ज़िंदगी कुछ भी देते हुए
कितना समय ले लेती है…
आभास भी नहीं होने देती…
बचता है अधूरापन…
हर ज़गह…
पूर्णता की प्राप्ति की छटपटाहट से बचा हुआ एकांत ही अधूरापन है …
वंंदना “अहमदाबाद”