“एक दिन इंक़लाब बोलेगा” (ग़ज़ल)

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वक़्त जब कामयाब बोलेगा
हम जो देखेंगे ख़्वाब बोलेगा

रंग पर हक़ है तितलियों का भी
क्या कभी भी गुलाब बोलेगा

आप चाहे यहाँ बदल दें सब
पर वहाँ भी हिसाब बोलेगा

अपना बच्चा बिठा के कंधे पर
वो पिता है नवाब बोलेगा

आज जिसकी मदद करूँ, कल वो
जानती हूँ ख़राब बोलेगा

जिनकी गर्दन दबा के रक्खोगे
एक दिन इंक़लाब बोलेगा

स्वास्थ्य, शिक्षा, बे-रोज़गारी पर
कुछ नहीं फिर जनाब बोलेगा

वंदना “अहमदाबाद”

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