पूर्वांचल लाईफ/पंकज कुमार मिश्रा
जौनपुर ! चुनावों के मद्देनजर काफी सारे प्रोपेगेंडा सोशल मिडिया पर तैर रहें। कल जब बसपा नें प्रत्याशी बदला तो सोशल मिडिया पर एक ही खबर के दो विव्यू सामने आये। एक तरफ कहा गया धनंजय सिंह की पत्नी नें चुनाव लड़ने से इंकार किया तो दूसरी तरफ टिकट काटने की बात पोस्ट हुईं। सोशल मिडिया प्रोपेगेंडा की खान है। कल पूरे दिन सोशल मिडिया की राजनीति करने वाले आज पूरे दिन विश्राम पर दिखे। अफवाह और कुतर्क भरे चुनावी पोस्ट सोशल मीडिया में जानबूझकर फैलाया जा रहा है। तरीका वही पुराना वाला है। एक के खिलाफ दूसरे के दिमाग मे और तीसरे के खिलाफ चौथे के दिमाग मे जहर भरो। मेरी तरफ से ध्रुव राठी जैसो को यह सुझाव है कि किसी भी प्रोपेगेंडा को हवा देना उससे होने वाले नुकसान का सहभागी होना कहलाता है। आज देश में मर चुके जमीर को पुनर्जीवित करने के लिए हम जैसे लोगो द्वारा कलम और लोकतंत्र के साथ सत्तासीन और विपक्ष के चंद लोगो से वैचारिक युद्ध लड़ा जा रहा है। देश में हर कम्युनिटी को टारगेट कर के उनसे प्रोपेगेंडा फैलवाया जा रहा है। मीडिया कब पेड मीडिया में तब्दील हो गयी किसी को पता भी नहीं चला। हमने एक आलोचना लिखने वाले दलित लेखक दिलीप मंडल और सवर्ण पत्रकार रविश कुमार तक को निज स्वार्थ के लिए विपक्ष की चाटुकारिता करते देखा है। प्रोपेगेंडा भरे पोस्ट को पहचानने के लिए पोस्ट के बोल वचन को समझना होगा। कोई भी एक ही जेनर की पोस्ट जब ट्रेंड की तरह दौड़ने लगे तो उस पोस्ट को किए जाने वाली मनसा का विश्लेषण करना चाहिए। तभी आप प्रोपेगेंडा वाले पोस्ट पहचान पाएंगे। किसी भी ऐसे पोस्ट, जिसकी सत्यता पर आपको डाउट हो उन्हें तत्काल क्रॉस वेरिफाई करने की आवश्यकता है। उसके बाद उस पोस्ट को फैलाने का मकसद समझना होगा। अभी कल के उदाहरण से इसको समझ सकते है। सपा नें प्रदेश अध्यक्ष बदला और बसपा नें प्रत्याशी तब तक अफवाह यह की श्रीकला धनंजय सिंह नें भाजपा जॉइन कर ली जबकि अभी तक लोकसभा में राजनीतिक उठापठक थमा नहीं है, वही एक ध्रुव राठी टाईप के सोशल मिडिया इन्फेलुसर नें तो यहा तक लिख दिया कि भाजपा धनंजय सिंह, अनंत नारायाण सिंह इत्यादि को जानबूझकर बेल दिलवा रहीं ताकि यह चुनाव को प्रभावित कर सके। सोशल मीडिया पर चुनावी जुमले लिखने वाले इतने अधिक हो गए है कि अब आधा सच आधा फ़साना भी थोड़ा सच पूरा फ़साना लगने लगा है। खैर जनपद कि राजनीति अभी शांत नहीं हुईं है। बात समर्थन और विरोध पर आकर रुकी हुईं है। लोकसभा मछलीशहर में भी चुनावी गणितज्ञ एक टोटल बेसलेस प्रोपेगेंडा बना रहें है। तूफानी सरोज के क्षत्रिय समाज वाले बयान की वजह से क्षत्रिय समाज सपा से नाराज है। सपा जानती है कि क्षत्रिय कम्युनिटी कभी उनका वोटर ना रहीं है ना होगी जबकि एमवाय के नाम पर यूपी की राजनीति में बहुत दिन तक सर्वाइव करना मुश्किल है। क्षत्रिय समाज वापिस से भाजपा की झोली में हाजिर था और शायद रहेगा क्योंकि भाजपा के सिवाय कोई भी राजनीतिक दल क्षत्रियों के सम्मान की नहीं करता। इसी प्रोपेगेंडा पर दूसरी कोशिस के लिए इस चुनावी आग के बीच ब्राह्मण अपमान और ब्राह्मण बाहुल्य इलाकों में विकास कार्य ना होना शामिल है। जिसमें ब्राह्मण के नाम पर किसी दलित और गरीब से टारगेट करवा कर सोशल मिडिया पर ब्राह्मण-दलित कराने की भी मंशा है। यह सब लिखने का टोटल प्वाइंट ऑफ व्यू यही है कि प्रोपेगेंडाओं को पहचानने की कोशिस करें और सुधारवादी विचारधारा का पालन शुरू करें। हर प्रोपेगेंडा को एक्सपोज कर उसको उखाड़ फेंकना ही उद्द्येश्य है हमारा।