“न्याय के मंदिर में अन्याय: जौनपुर में समाजसेवी को ताले में बंद करने का वीडियो वायरल”

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कलेक्ट्रेट परिसर में न्याय व्यवस्था पर सवाल, प्रशासनिक अमले की संवेदनहीनता उजागर

जौनपुर।
न्याय के मंदिर माने जाने वाले कलेक्ट्रेट परिसर में एक चौंकाने वाली और शर्मनाक घटना ने शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। जौनपुर रेस्क्यू टीम के संस्थापक एवं समाजसेवी संदीप को महज़ दस्तावेज मांगने पर राजस्व विभाग के कर्मियों द्वारा एक कक्ष में बंद कर बाहर से ताला लगा दिया गया। यह पूरी घटना पुलिस अधीक्षक कार्यालय के ठीक सामने स्थित राजस्व विभाग कार्यालय में घटी। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिससे आमजन में आक्रोश फैल गया है।

क्या है पूरा मामला?
पीड़ित संदीप अपनी निजी भूमि से संबंधित अभिलेख लेने के लिए राजस्व विभाग पहुंचे थे। वहां उपस्थित कर्मचारियों ने पहले उनके साथ अभद्र व्यवहार किया और फिर कथित रूप से उन्हें कार्यालय में बंद कर बाहर से ताला जड़ दिया। यह कार्रवाई न केवल प्रशासनिक अधिकारों का दुरुपयोग है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक सम्मान का भी खुला उल्लंघन है।

जनता में आक्रोश, विभाग पर लगे गंभीर आरोप:
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि राजस्व विभाग में पहले से ही भ्रष्टाचार, लेटलतीफी और अनावश्यक दबाव की शिकायतें मिलती रही हैं। मगर इस बार एक समाजसेवी को प्रताड़ित करने की यह हरकत सभी सीमाएं पार कर गई। लोगों ने कहा कि यदि आम नागरिकों की यही दुर्गति होगी, तो कचहरी जैसे न्यायिक परिसर की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगना लाजमी है।

जनता और पीड़ित की प्रमुख माँगें:
1.तत्काल निष्पक्ष जांच कर दोषियों की शिनाख्त की जाए!
2.संलिप्त राजस्व कर्मियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए एवं कानूनी कार्रवाई हो।
3.कचहरी परिसर में नागरिकों की सुरक्षा एवं सम्मान की गारंटी सुनिश्चित की जाए।
4.राजस्व अभिलेख प्रणाली को पूरी तरह डिजिटल एवं पारदर्शी बनाया जाए।

एडीएम की सफाई
मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए अपर जिलाधिकारी भू-राजस्व अजय कुमार विष्ठ ने बताया कि यह घटना 30 जुलाई की है। उस दिन विभाग में एक रिटायर कर्मचारी की विदाई पार्टी थी, ओ
जिसमें शाम करीब 4:30 से 5:00 बजे के बीच सभी कर्मचारी शामिल होने जा रहे थे। इसी दौरान फरियादी अभिलेख लेने पहुंचा।

एडीएम के अनुसार, कर्मचारियों ने फरियादी से अगली सुबह आने का अनुरोध किया, लेकिन वह बिना अभिलेख लिए जाने को तैयार नहीं हुआ। इसी बीच विभाग के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने उसे कक्ष में बंद कर बाहर से ताला लगा दिया।
अधिकारियों को जैसे ही घटना की जानकारी मिली, तत्काल उसे मुक्त कराया गया।

एडीएम ने यह भी कहा कि अभिलेख काफी पुराना है, जिसकी खोज काफी समय से चल रही है। हालांकि उन्होंने माना कि इस घटना में लापरवाही हुई है और इसकी जांच कराई जा रही है।

चेतावनी:
पीड़ित पक्ष और स्थानीय नागरिकों ने चेतावनी दी है कि यदि इस मामले में त्वरित और कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो वे न्यायालय का दरवाजा खटखटाने या कलेक्ट्रेट परिसर में धरना-प्रदर्शन करने के लिए बाध्य होंगे। लोगों का कहना है कि यह केवल एक व्यक्ति का अपमान नहीं, बल्कि पूरे नागरिक समाज के अधिकारों पर कुठाराघात है।

निष्कर्ष:
इस घटना ने यह साबित कर दिया कि जनता की समस्याएं सुनने के लिए बनाए गए कार्यालयों में जब अभद्रता और बंदी जैसी घटनाएं हों, तो लोकतंत्र की आत्मा आहत होती है। ऐसे में ज़रूरी है कि प्रशासन तत्काल हरकत में आए, दोषियों को दंडित करे और जनता के विश्वास की पुनः स्थापना करे।

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