तुलसीदास जयंती : कलयुग केवल नाम अधारा

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पंकज सीबी मिश्रा/पूर्वांचल लाईफ
यूपी : गुरुवार 31 जुलाई को विलक्षण संयोग से दो महान चिर परिचित विभूतियों, तुलसीदास और प्रेमचंद की जयंती एक ही दिन पड़ रही है। इस मौके को हमने इन दोनों महान साहित्यकारों को और इनके विचारों को अगल-बगल रखकर इन पर विचार करते हुए इनका स्मरण किए। भले ही तुलसीदास भक्ति काल के कवि थे और प्रेमचंद आधुनिक युग के कथाकार, लेकिन दोनों ही महान लेखकों ने अपने-अपने समय में समाज की आत्मा को समझने और उसे साहित्य के माध्यम से अभिव्यक्त करने का प्रयास किया। दोनों के साहित्य में जन-कल्याण की भावना, मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था और सामाजिक विसंगतियों के प्रति गहरी संवेदनशीलता देखी जा सकती है। तुलसीदास का जन्म संवत 1554 (1497 ईस्वी) में हुआ था। यह उनकी 528वीं जयंती है। उनका जन्मस्थान राजापुर गाँव है, जो उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में स्थित है। वैसे तो इस धरती पर कतिपय ऐसी महान विभूतियां आई हैं, जिनका अवतरण (जन्म) एवं निर्वाण (मृत्यु) एक ही तिथि को हुआ है। उन विभूतियां में भक्ति-कुल- शिरोमणि तुलसीदास जी अन्यतम हैं। उनका जन्म तथा देहावसान – दोनों ही श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। तुलसीदास जी के जन्म पर यह दोहा प्रचलित है –
पन्द्रह से चौवन विषै, कालिंदी के श तीर। सावन सुक्ल सप्तमी, तुलसी धरेउ शरीर।। अर्थात् 1554 विक्रम संवत् में यमुना नदी के किनारे श्रावण शुक्ल सप्तमी को तुलसीदास जी ने जन्म ग्रहण किया था। उनके देहावसान पर यह दोहा प्रसिद्ध है

संबत सोलह से असी, असी गंग के तीर। श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तजै शरीर।। अर्थात संवत् 1680 में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा नदी के तट पर स्थित असी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपन शरीर का परित्याग कर दिया। तुलसीदास जी का अद्भुत जीवन जन्म के समय तुलसीदास रोए नहीं, बल्कि उनके मुख से “राम” शब्द उच्चरित हुआ। उनके जन्म की चौथे दिन ही माता ‘हुलसी’ का देहावसान हो गया। जब तुलसीदास जी साढ़े पांच वर्ष के थे, तब उनका पालन-पोषण करनेवाली ‘चुनिया’ का भी देहान्त हो गया। एक तरह से तुलसीदास अनाथ हो गए। तभी श्री नरहर्यानंद जी की दृष्टि तुलसीदास पर पड़ी। उन्होंने इस बालक का नाम “राम बोला” रखा। उन्होंने ही इन्हें” राम मंत्र ” की दीक्षा दी। तुलसीदास जी ने काशी में पन्द्रह वर्ष तक रहकर वेद-वेदाङ्ग, रामायण, महाभारत आदि का गंभीर अध्ययन किया।उनतीस वर्ष की आयु में सुन्दर नवयुवती” रत्नावली” के साथ उनका विवाह हुआ। कुछ दिन बाद वह घर छोड़कर निकल पड़े। प्रयाग आकर उन्होंने गृहस्थ वेश का परित्याग कर साधु-वेश ग्रहण किया। धन्य हैं रत्नावली देवी! जिन्होंने तुलसीदास जी को” काम “से” राम” की ओर मोड़ दिया अर्थात् माया में बंधे तुलसीदास को मायापति श्रीराम की ओर उन्मुख कर दिया। भक्त तुलसीदास जी ने 77 (सतहत्तर) वर्ष की आयु में संवत 1631 में रामनवमी के दिन अयोध्या में रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की थी। तुलसीदास जी स्वयं रामचरितमानस में लिखते हैं –
संवत सोलह सै एकतीसा।
करउं कथा हरि पद धरि सीसा।।
अर्थ – श्री हरि के चरणों पर मस्तक रखकर संवत् 1631 में इस कथा (रामकथा याने श्री रामचरितमानस) का आरंभ करता हूं। महाकाव्य रामचरितमानस के सातों काण्ड की समाप्ति दो वर्ष सात महीने छब्बीस दिन में संवत् 1633 के मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में राम-विवाह के दिन हुई थी। महाकाव्य श्री रामचरितमानस की रचना के कारण भक्त कवि तुलसीदास जी की गणना विश्व के प्रसिद्ध महाकवियों में होती है।

महाकाव्य श्री रामचरितमानस को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46 वां स्थान प्राप्त हुआ है। यह हम सभी के लिए गर्व की बात है। तुलसीदास जी की अन्य काव्य रचनाएं – विनय पत्रिका, कवितावली, दोहावली, हनुमान चालीसा भी लोकप्रिय हैं। आपको गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं। तुलसीदास का विवाह रत्नावली से हुआ था। अपनी पत्नी के एक कठोर वचन से प्रेरित होकर, उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया और रामभक्ति में लीन हो गए। अकिंचन तुलसीदास ने जो कर दिखाया वह बड़े बड़े सूरमा भी नहीं कर सके। उस तमोयुग में धर्मरक्षा का कार्य करना अत्यंत दुष्कर था। धर्म तो धर्म देश का गौरव भी रसातल में जा चुका था। जिन क्षत्रियों पर देश धर्म की रक्षा का भार था उनकी तलवारें कुंद पड़ चुकी थीं या फिर मुग़लों के राज्य विस्तार के लिए उठ रही थीं। मंदिर ध्वस्त कर दिए गए थे। सनातन धर्म की अस्मिता की वही दशा थी कि, अधम निसाचर लीन्हें जाई । जिमि म्लेच्छ बस कपिला गाई॥ ऐसे घोर कलिकाल में राम नाम को घर घर पहुँचाना और एक सामवेद तुल्य ग्रंथ की रचना कर देना सामान्य बात नहीं थी। तुलसी की यह कृति कालजयी सिद्ध हुई। मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की। गति कूर कविता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥ प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मनभावनी। भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी।। महाकवि परमभक्त तुलसीदास जी के अवतरण दिवस पर उन्हें कोटि कोटि नमन।

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