डॉ. प्रद्युम्न सिंह, हिन्दी विभाग
हण्डिया पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज, प्रयागराज
प्रयागराज।
गोस्वामी तुलसीदास न केवल एक कवि थे, बल्कि वे भारतीय आत्मा के अमर प्रवक्ता भी थे। उनकी वाणी में धर्म की गंभीरता, दर्शन की गहराई, संस्कृति की जड़ें और लोकमानस की सरलता एक साथ समाहित है। उनका साहित्य महज पंक्तियों में गुँथा हुआ काव्य नहीं, बल्कि भारतीय जनमानस की चेतना का प्रतिरूप है।
रामचरितमानस के माध्यम से तुलसीदास ने धार्मिकता को रूढ़ियों से अलग करते हुए उसे जनता की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति का आधार बनाया। उन्होंने संस्कृत जैसे दार्शनिक भाषा के गूढ़ विचारों को अवधी जैसी सहज लोकभाषा में ढालकर जन-जन तक पहुँचाया। राम को उन्होंने केवल ईश्वर नहीं, बल्कि जनता का नायक, नीति का प्रतीक और सामाजिक आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया।
आज जब भारतीय समाज सांस्कृतिक और नैतिक दिशाहीनता की स्थिति से जूझ रहा है, तब तुलसीदास की वाणी हमें फिर से आशा, दिशा और उद्देश्य देती है। उनका साहित्य न केवल काव्य की दृष्टि से महान है, बल्कि भारतीय लोकआस्था, नैतिक चेतना और सांस्कृतिक समरसता का भी अमर स्तंभ है।
गोस्वामी तुलसीदास आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने अपने समय में थे – और यही उन्हें ‘अमर गायक’ बनाता है।