“154वें सृजन संवाद में शिवमूर्ति के उपन्यास ‘अगम बहे दरियाव’ पर चर्चा”

Share

जमशेदपुर, झारखण्ड।
साहित्य, सिनेमा एवं कला संस्था ‘सृजन संवाद’ में 13 सितम्बर 2025, सायंकाल 154वीं गोष्ठी में शिवमूर्ति के उपन्यास पर ‘अगम बहे दरियाव’ पर देवेंद्र और नवीन जोशी ने संवाद किया।

स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव पर लखनऊ से प्रसिद्ध उपन्यासकार शिवमूर्ति ने नवीन जोशी एवं देवेंद्र से संवाद किया, साथ ही श्रोताओं/दर्शकों के प्रश्नों के उत्तर भी दिए। संवादियों ने भी उपन्यास पर अपने-अपने विचार रखे। लखनऊ से ही डॉ. मंजुला मुरारी ने संचालन किया। डॉ. विजय शर्मा ने स्वागत एवं धन्यवाद ज्ञापन किया।

डॉ. विजय शर्मा ने विषय परिचय देते हुए राजकमल प्रकाशन से आए ‘अगम बहे दरियाव’ को लंबा होने के बावजूद खूब पढ़े जाने की बात बताई। उपन्यास में शिवमूर्ति के परिचित कई व्यक्ति पात्र के रूप में उपस्थित हैं। शिवमूर्ति न केवल कुशल कहानीकार, उपन्यासकार है, वरन वे खूब गूमते हैं। हाल में ऑस्ट्रेलिया के दौरे से लौटे हैं। उनके कार्य पर फ़िल्म बनी हैं। वे गाँव में लोगों को आमंत्रित कर उन्हें अपनी उपन्यासों के जीवित पात्रों से मिलवाते हैं। डॉ. शर्मा ने शिवमूर्ति के साथ डॉ. मंजुला मुरारी, संवादी द्वै नवीन जोशी, देवेंद्र तथा फ़ेसबुक लाइव साथियों का स्वागत किया।

डॉ. मंजुला मुरारी ने उपन्यास की प्रति दिखाते हुए बताया, सुलतानपुर उत्तर प्रदेश में जन्मे शिवमूर्ति की ‘केसर कस्तूरी’, ‘कुच्ची का कानून’, ‘त्रिशूल’, ‘तर्पण’, ‘कसाईबाड़ा’, ‘सृजन रसायन’, ‘मेरे साक्षात्कार’ कृतियाँ प्रकाशित हैं। वे दृश्य माध्यम में भी उपलब्ध हैं। श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ़को साहित्य सम्मान सहित उन्हें कई अन्य पुरस्कार प्राप्त हैं।

शिवमूर्ति ने अपने वक्तत्व में कहा, इस उपन्यास की रचना प्रक्रिया बड़ी लंबी रही। वे हाथ से लिखते हैं, कोरोना के कारण इसे प्रिंट में परिवर्तित करने में बड़ी कठिनाई आई। एक व्यक्ति दूर से हस्तलिखित की फ़ोटो खींचता, फ़िर उसे कम्प्यूटर पर टाइप करता। इसमें तीन सौ से अधिक पात्र हैं।

पाठकों की माँग और बची सामग्री के आधार पर वे इसका अगला भाग लिख रहे हैं।
देवेंद्र ने इसे ‘गोदान’ की अगली कड़ी बताया। भारतीय गांवों का जन जीवन, उसकी मुश्किलें, उसके अंतर्विरोध आदि का समुच्चय इतिहास, उसका लेखा जोखा आदि की विस्तृत गाथा शिवमूर्ति के उपन्यास अगम बहै दरियाव में है। ‘अगम बहे दरिया’ का केंद्रीय चरित्र संतोखी नाई सामाजिक संरचना और जातिगत स्थिति में प्रेमचंद के होरी से काफी नीचे के पायदान पर है। उन्होंने कहा, ‘गोदान’ को किसान जीवन का महाकाव्य कहा जाता है। यह समूचे ग्रामीण जीवन का दूसरा महाकाव्य है।

नवीन जोशी ने कहा कि ‘अगम बहै दरियाव’ 1970 के दशक से लेकर आज तक के उत्तर भारतीय ग्रामीण समाज की प्रामाणिक कथा है, जिसके केंद्र में आम किसान हैं। जो अपने कष्ट और संकट सीधे होरी और गोबर के समय विरासत में पाए चले आ रहे हैं। 586 पन्नों के विशाल कलेवर के उपन्यास में बहुत सारे चरित्र हैं, उतनी ही कथाएं जो किसी-न-किसी सूत्र से गूँथी हुई हैं। एक गांव के बहाने यह उपन्यास पूरा भारत है, कम से उत्तर भारत का आज का ग्रामीण समाज तो यह है ही।
न चाहते हुए भी चर्चा का समापन करते हुए डॉ. शर्मा ने कहा इस उपन्यास के महत्व को पढ़कर ही जाना जा सकता है, शिवमूर्ति इसका अगला खंड ला रहे हैं, जिसका स्वागत योग्य है। उन्होंने धन्यवाद ज्ञापन के साथ सृजन संवाद की 155वीं गोष्ठी में फ़ेमिना की घोषणा की।

फ़ेसबुक लाइव के माध्यम से जमशेदपुर से डॉ. क्षमा त्रिपाठी, अर्चना अनुपम, वैभव मणि त्रिपाठी, वीणा कुमारी, गोरखपुर से अनुराग रंजन, बैंग्लोर से पत्रकार अनघा मारीषा, दिल्ली से रक्षा गीता, महेश्वर दत्त शर्मा, राकेश कुमार सिंह, भोपाल से डॉ. वंदना मिश्र, गोवर्धन, मथुरा से डाॅ. देवेन्द्र शर्मा, जौनपुर से अश्वनी तिवारी, उत्तराखंड से शशि भूषण बडौनी आदि जुड़े। इनके प्रश्नों एवं टिप्पणियों से कार्यक्रम अधिक सफ़ल हुआ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!