मैं जौनपुर हूँ
सदियों का साक्षी
मैं जमदग्निपुरम हूँ
गोमती का साक्षी
मैं जौनपुर हूँ
भ्रष्टाचार से मौतों का साक्षी
एक नहीं दो नहीं बल्कि तीन
तब भी मैं मौन था
जब मानक विहीन सड़कें बन रही थीं
तब भी मौन था ।
जब मानक विहीन सीवेज बन रहे थे
मैं मौन साधना कर रहा था।
उस परम सत्ता के सामने मुँह कैसे खोलूँ ?
अपनी बनी बनाई इमेज कैसे धो लूँ ?
परम सत्ता से जुड़कर रहने में ही भलाई है
उसके गुणगान में ही मलाई है।
मरने वाले तो मरेंगे ही रहेंगे
सड़कें धँसती ही रहेंगी।
पर उसका विरोध कर मैं विधर्मी क्यों बन जाऊँ ?
देशद्रोही क्यों बन जाऊँ ?
होनी तो होकर ही रहेगी।
प्राची मरेगी समीर मरेगा और मरेगा सारा संसार।
मौन साधना से परम सत्ता की कृपा बरसेगी
बरसेगा जन जन का प्यार।
रिक्शा चालक गौतम ही तो मरा है
कोई नेता अभिनेता थोड़े मरा है !
कि हो जाऊँ आक्रोशित
मौन साधना तोड़कर,
मैं हो जाऊँगा दुखित।
मुँह खुल गया तो क्या मिलेगा !
सो चुप हूँ अनीति पर भी
चुप हूँ कुनीति पर भी।
मैं सहनशील हूँ न
मैं जौनपुर हूँ न
गङ्गा जमुनी तहजीब की धरती।
मैं जौनपुर हूँ मैं चुप हूँ।।
रचनाकार -डाॅ.रामजी तिवारी
शिक्षक सेन्ट जान्स स्कूल, जौनपुर