संवाददाता: आनन्द कुमार
जौनपुर। केराकत
जनता उम्मीद करती रही, विभाग मीटिंग करता रहा – और इस बीच, ख़ुज्झी से केराकत को जोड़ने वाला संपर्क मार्ग एक बार फिर बरसात में डूब गया। टाइ वीर बाबा के पास बहने वाले नाले पर पुल निर्माण की योजना वर्षों से केवल फाइलों के पुलिंदों में दबी पड़ी है, और ज़मीन पर दलदल और मायूसी का साम्राज्य फैल चुका है।
बरसात शुरू होते ही चंदवक, बजरंगनगर, ख़ुज्झी और पतरही जैसे कई गांवों का मुख्य सड़क से संपर्क टूट जाता है। न स्कूल जाने की राह बचती है, न अस्पताल पहुँचने का रास्ता। ग्रामीण मजबूरी में खतरनाक जलधारा पार कर रहे हैं, जैसे विकास नहीं, रोमांच यात्रा पर निकले हों।
पीडब्ल्यूडी के अधिकारी हर साल ‘शीघ्र कार्रवाई’ का वादा तो करते हैं, लेकिन हर बार “बहुत जल्द” की घड़ी, अगले मानसून तक टल जाती है। सवाल यह है कि आखिर यह “जल्द” कब आएगा? जब कोई बड़ा हादसा हो? जब कोई बच्चा बह जाए? या जब कोई नेता उसी कीचड़ में फंसे?
ग्रामीणों का गुस्सा अब शब्दों से बाहर छलकने लगा है। उनका कहना है –
“हमें पुल नहीं, वादों का बोझ मिला है। पर धरातल पर हम अब भी घुटनों तक पानी में फंसे हैं।”
सड़क की हालत ऐसी है कि बाइक चलाना तो दूर, पैदल चलना भी एक साहसिक मिशन जैसा लगता है। अगर प्रशासन को यकीन न हो तो एक बार बिना एसी गाड़ी के उस रास्ते पर चल कर देख ले।
सरकार और पीडब्ल्यूडी से जनता का सीधा सवाल है –
“कब बनेगा यह पुल? और कब थमेगा हमारी उम्मीदों पर बरसता यह पानी?”
यह सिर्फ एक सड़क नहीं, विकास के खोखले वादों पर एक करारा तमाचा है, जो हर बारिश में और गीला हो जाता है।