रामलीला के मंच पर जीवंत हुआ दशरथ विलाप, पिता-पुत्र प्रेम ने सभी को भावविभोर किया

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“प्राण जाए पर वचन न जाई” – रघुकुल रीति का अमर संदेश मंच पर जीवंत

संवाददाता पंकज जायसवाल

जौनपुर। शाहगंज नगर की ऐतिहासिक रामलीला में शनिवार को रामदरबार की लीला ने श्रोताओं के दिलों को छू लिया। बीस दिवसीय रामलीला के चौथे दिन का मंचन गांधीनगर कलेक्टरगंज स्थित रामलीला मैदान पर आयोजित किया गया। इस दिन की मुख्य प्रस्तुति थी – सुमंत का अयोध्या आगमन, राजा दशरथ का विलाप और महाप्रयाण।

वृंदावन की आदर्श रासेश्वरी रामलीला मंडली ने इस क्रम में तमशा नदी के तट से राम-सिया को चित्रकूट की ओर जाते हुए दिखाया। निषादराज की सौगंध पर आर्य सुमंत खाली रथ के साथ अयोध्या लौटे। राजा दशरथ ने अपने पुत्र की अनुपस्थिति में स्वयं को व्याकुल पाते हुए, पुत्र वियोग में प्राण त्याग दिए, जिससे रघुकुल रीति का वह शाश्वत संदेश “प्राण जाए पर वचन न जाई” जीवंत हो उठा।

मंच पर मौजूद अयोध्यावासी रूपी दर्शक भावविभोर हो उठे और अश्रु छलक उठे। पिता-पुत्र के इस दिव्य प्रेम ने सभी के हृदय में भावनाओं का सागर भर दिया। कार्यक्रम के अंत में रामभक्तों ने श्रीराम के जयकारे लगाकर मंच को गगनभेदी कर दिया।

रामलीला समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि अगले चरण में भी श्रीराम के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का जीवंत मंचन जारी रहेगा, जिसमें दर्शकों को धार्मिक, भावनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टि से अनूठा अनुभव मिलेगा।

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