लखनऊ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि केवल आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाणपत्र, किसी विवाह की वैधता को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अगर विवाह कानूनी रूप से पंजीकृत नहीं है या विवाह का कोई वैध प्रमाण नहीं है, तो ऐसे विवाह को कानून की नजरों में मान्यता नहीं दी जा सकती।
यह फैसला उस समय आया जब आशीष मौर्य नामक युवक ने अपने विवाह की पुनर्स्थापना के लिए दी गई याचिका को लेकर परिवार न्यायालय, सहारनपुर के आदेश को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि अनामिका धीमान उनकी पत्नी हैं और उन्होंने आर्य समाज मंदिर में शादी की थी। हालांकि महिला ने विवाह से इनकार करते हुए आरोप लगाया कि झूठे प्रमाणपत्र के जरिए उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश की गई है।
इस मामले में सहारनपुर के सदर बाजार थाने में प्राथमिकी भी दर्ज की गई और पुलिस ने चार्जशीट भी दायर कर दी।
हाईकोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति एस.पी. केसरवानी और न्यायमूर्ति राजेन्द्र कुमार शामिल थे, ने कहा कि विवाह की वैधता के ठोस साक्ष्य के बिना हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत विवाह पुनर्स्थापना की याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने यह भी कहा कि परिवार अदालत द्वारा याचिका खारिज करना पूरी तरह से कानून सम्मत था। यह स्पष्ट कर दिया गया कि आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी प्रमाणपत्र मात्र शादी का प्रमाण नहीं माना जा सकता जब तक अन्य वैध दस्तावेज़ और प्रक्रिया पूरी न की गई हो।
इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने आशीष मौर्य की याचिका खारिज कर दी और कहा कि केवल एक धार्मिक संस्था से जारी प्रमाणपत्र के आधार पर किसी की वैवाहिक स्थिति को सिद्ध नहीं किया जा सकता।
निष्कर्ष:
यह निर्णय लव मैरिज करने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी संदेश है, यदि विवाह को वैध और मान्य बनाना है, तो उसकी विधिवत रजिस्ट्रेशन कराना बेहद ज़रूरी है। केवल आर्य समाज या किसी अन्य संस्था का प्रमाणपत्र पर्याप्त नहीं होता।