श्रावण मास में सेवा का संकल्प: “बृज की रसोई” बनी बेसहारों का सहारा

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लखनऊ, 20 जुलाई 2025।
श्रावण का महीना सिर्फ भक्ति का नहीं, सेवा और संवेदना का भी प्रतीक है। इसी भावना को साकार करते हुए इण्डियन हेल्पलाइन सोसाइटी (पंजीकृत) के अंतर्गत संचालित “बृज की रसोई” ने एक बार फिर लखनऊ के आशियाना क्षेत्र में जरूरतमंदों के लिए नि:शुल्क भोजन वितरण का भव्य आयोजन किया।

यह सेवा कार्यक्रम उन लोगों के लिए समर्पित था जो रोज़ की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बुज़ुर्ग, निराश्रित बच्चे, निर्माण स्थलों पर काम करने वाले श्रमिक और मलिन बस्तियों के निवासी। संस्था के संस्थापक विपिन शर्मा ने बताया कि यह अभियान सिर्फ भोजन बाँटने का नहीं, बल्कि उम्मीद बाँटने का प्रयास है।

संस्था की राष्ट्रीय महिलाध्यक्ष रजनी शुक्ला ने इस पहल को “भूख से लड़ाई नहीं, भूख से हार चुके लोगों तक करुणा पहुँचाने की कोशिश” बताया। उनका कहना है कि यह अभियान हर रविवार किसी न किसी संवेदनशील इलाके में पहुँचकर पौष्टिक और स्वच्छ भोजन बाँटता है निःस्वार्थ और निश्छल भाव से।

इस बार का वितरण कार्यक्रम सेक्टर-एम रिक्शा कॉलोनी, रतन खंड, डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के समीप झुग्गियाँ, नगर निगम जोन-8 की बस्तियाँ, और पानी टंकी क्षेत्र में संपन्न हुआ, जहाँ लगभग 1400 से अधिक जरूरतमंदों को भोजन परोसा गया।

सेवा कार्यक्रम में संस्था के स्वयंसेवकों की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय रही। विकास पाण्डेय, अनुराग दुबे, संजय सिंह, दिनेश कुमार पाण्डेय, आशीष श्रीवास्तव, मुकेश कनौजिया, नवल सिंह और रजनी शुक्ला सहित अनेक कार्यकर्ताओं ने सिर्फ खाना नहीं बाँटा, बल्कि हर जरूरतमंद से आत्मीयता से मिले मानो परिवार का हिस्सा हों।

मुकेश कनौजिया ने इस पहल को सिर्फ एक सामाजिक काम नहीं, बल्कि “मानवीय गरिमा की रक्षा” बताया। उनका मानना है कि किसी की भूख मिटाना ही सबसे बड़ा धर्म है। वहीं अनुराग दुबे का कहना है कि इस अभियान ने यह साबित कर दिया कि जब समाज एकजुट होता है, तो कोई भी संकट बड़ा नहीं रहता।

कार्यक्रम के अंत में संस्था ने एक भावुक अपील की यह सेवा कुछ लोगों के प्रयास से ही नहीं चल सकती। समाज के हर संवेदनशील नागरिक, युवा और संगठन से सहयोग का आह्वान किया गया, ताकि यह अभियान और व्यापक बन सके।

“बृज की रसोई” अब महज एक नाम नहीं, एक आंदोलन बन चुका है जहाँ हर रविवार न केवल भूखे पेट भरते हैं, बल्कि चेहरों पर मुस्कान लौटती है। और यही इस सेवा का सबसे सुंदर प्रतिफल है।

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