“कारखास” की बेलगाम ताकत से पुलिस विभाग पर सवाल, कानून-व्यवस्था बनी मजाक

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च 2017 को शपथ लेने के बाद प्रदेश की बिगड़ी हुई कानून-व्यवस्था को सुधारने और एक अनुकरणीय मॉडल बनाने की दिशा में कई कदम उठाए। एंटी भू-माफिया टास्क फोर्स का गठन और ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति के तहत कई सख्त कानून लागू किए गए। बावजूद इसके, प्रदेश के थानों में तैनात ‘कारखास’ और सिपाही इस व्यवस्था को पंगु बनाते नजर आ रहे हैं।

क्या है ‘कारखास’ की भूमिका?

‘कारखास’ कोई आधिकारिक पद नहीं है, लेकिन पुलिस थानों में इनकी अहमियत थानेदार से कम नहीं होती। यह सिपाही थानों में तैनात होते हैं और इलाके में वसूली से लेकर पुलिस थाने के खर्च तक का प्रबंधन करते हैं। अमूमन सादे कपड़ों में रहने वाले ये ‘कारखास’ कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। उनकी मर्जी के बिना थाने में किसी की पोस्टिंग या ड्यूटी तय नहीं होती।

इनका प्रभाव इतना अधिक है कि नए थानेदार भी इनके इशारे पर काम करने को मजबूर होते हैं। क्षेत्रीय दबंगों, अवैध कारोबारियों और माफियाओं से इनकी गहरी साठगांठ होती है। पुलिस विभाग में अवैध वसूली के इस तंत्र को ‘कारखास’ ही चला रहे हैं।

कानून-व्यवस्था पर ‘कारखास’ का शिकंजा

अवैध खनन, जुआ, शराब, और नशे के अड्डों से लेकर अवैध पार्किंग और स्टैंड तक से वसूली का जिम्मा इन्हीं के पास होता है। इनकी सेटिंग के बिना थाना क्षेत्रों में किसी भी अवैध गतिविधि की अनुमति नहीं मिलती। इनका प्रभाव थाने से लेकर सत्ता के गलियारों तक फैला हुआ है। यहां तक कि कई ‘कारखास’ थानेदार से अधिक रुतबा रखते हैं।

आईपीएस प्रभाकर चौधरी का सख्त रवैया

बरेली के एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने ‘कारखास’ के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। वह अपने तैनात जिलों में गोपनीय जांच कराकर ‘कारखास’ को निलंबित करते हुए पुलिस लाइन भेजने के लिए जाने जाते हैं। इससे थानों में हड़कंप मच जाता है, लेकिन पूरे प्रदेश में ऐसा सख्त रवैया अपनाने वाले अधिकारी कम हैं।

अवैध तंत्र और सरकार की छवि

‘कारखास’ का यह तंत्र न केवल कानून-व्यवस्था को कमजोर कर रहा है, बल्कि सरकार की छवि भी धूमिल कर रहा है। अवैध वसूली और फर्जी मुकदमों के जरिए आम जनता में पुलिस के प्रति भय और अविश्वास का माहौल बन गया है।

समाप्ति की उम्मीद

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अवैध वसूली और भ्रष्टाचार खत्म करने के निर्देश कई बार दिए हैं, लेकिन यह तंत्र अब भी कायम है। विशेषज्ञों का मानना है कि ‘कारखास’ के इस तिलिस्म को तोड़े बिना उत्तर प्रदेश में अपराध और दबंगों पर नियंत्रण पाना मुश्किल है।

निष्कर्ष

पुलिस थानों में ‘कारखास’ के नाम पर चल रहे इस अवैध सिस्टम ने कानून-व्यवस्था को मजाक बना दिया है। यह सरकार और पुलिस विभाग दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती है। अगर इसे खत्म नहीं किया गया, तो प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति और बिगड़ सकती है।

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