सपा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के जनपद दौरे में दिखी “चुनिंदा संवेदनशीलता”

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मुस्लिम सपा नेता के परिजनों की अनदेखी बनी चर्चा का विषय

पूर्वांचल लाइफ जौनपुर
संवाददाता अनवर हुसैन

जौनपुर। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मंगलवार को एक दिवसीय दौरे पर जौनपुर पहुंचे। इस दौरान वे खुटहन विकासखंड अंतर्गत पिलकिछा गांव पहुंचे, जहां उन्होंने पूर्व ब्लॉक प्रमुख सरजू देई के दिवंगत पति धर्मराज यादव को श्रद्धांजलि अर्पित की। लेकिन इस दौरे में एक महत्वपूर्ण अनुपस्थिति ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।

दरअसल, समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ मुस्लिम नेता हिसामुद्दीन शाह की पत्नी का निधन दो दिन पूर्व हुआ था। शाह स्वयं कुछ समय पहले हार्ट अटैक के चलते अस्वस्थ चल रहे हैं। ऐसे में यह अपेक्षित था कि पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव उनके आवास जाकर शोक-संवेदना व्यक्त करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

मामला बना चर्चा का विषय
अखिलेश यादव जिस गांव में श्रद्धांजलि देने पहुंचे, वह मुस्लिम नेता हिसामुद्दीन शाह के गांव पोटरिया से महज 10–12 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके बावजूद उन्होंने शाह के आवास पर जाना जरूरी नहीं समझा। यह निर्णय न सिर्फ कार्यकर्ताओं को चौंकाने वाला लगा, बल्कि राजनीतिक गलियारों में तीखी चर्चाओं को भी जन्म दे गया।

पार्टी के एक स्थानीय नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यह कोई पहली बार नहीं है। इससे पहले भी कई मौके आए जब पार्टी अध्यक्ष जिले में मौजूद रहे, लेकिन मुस्लिम कार्यकर्ताओं या छोटे नेताओं के व्यक्तिगत दुख में शामिल नहीं हुए।”

कार्यकर्ताओं में असंतोष
इस घटना को लेकर पार्टी के मुस्लिम कार्यकर्ताओं के बीच नाराजगी और असंतोष स्पष्ट नजर आ रहा है। कई लोगों का कहना है कि पार्टी प्रमुख को सभी वर्गों और समुदायों के नेताओं के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। शोक संवेदना की राजनीति में भी संतुलन अपेक्षित होता है।

विरोधी खेमे को मिला मुद्दा
इस घटनाक्रम ने विरोधी दलों को भी हमला करने का अवसर दे दिया है। सोशल मीडिया से लेकर लोकल राजनीतिक बैठकों तक इस विषय पर चर्चा गर्म है। “क्या समाजवादी पार्टी की संवेदनशीलता अब वर्ग विशेष तक सिमट गई है?” जैसे सवाल उठाए जा रहे हैं।

फिलहाल पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि इस तरह की अनदेखियां बार-बार होती रहीं, तो आगामी चुनावों में इसका असर पार्टी की छवि और जनाधार पर अवश्य पड़ेगा।

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