महाकुंभ में जो दीप जलाए,
सेवा का संकल्प उठाए,
मानस के सच्चे किंकर बन,
हर दुखियों के आँसू सुखाए।
साधुवाद से पुण्य की गाथा,
हर कुंभ में गूंजे है,
भक्तों के आश्रयदाता बन,
वो सेवा का ताज पहने है।
रहने-खाने की हर सुविधा,
प्रेम से करते पूरी,
दानव्रत में जो तत्पर रहते,
उनकी गाथा दुनिया सुने।
धर्म से नाता जोड़ा जिसने,
वो सच्चा त्यागी कहलाए,
मानव सेवा ही प्रभु सेवा,
यह जीवन में साकार कराए।
डॉ. अखिलेश मिश्रा हैं वो,
जिनका जीवन प्रेरणा है,
हर कुंभ में उनकी सेवा,
जैसे अमृत की वर्षा है।
रचनाकार — चक्रेश जैन
काशीपुर, उत्तराखंड