मुद्दा : राजनीति परोस रही यूपी में दंगों का कॉकटेल

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पंकज सीबी मिश्रा/पत्रकार जौनपुर

(पूर्वांचल लाईफ न्यूज) सम्भल में दंगों का पैटर्न कोई नया नहीं और यह जाहिर सी बात हैं की ज़ब कुर्सी जीत ना पाओ तो दंगा करा के जनता को यह दिखाने की कोशिश कराओ कि क़ानून व्यवस्था ठीक नहीं। आश्चर्य की बात है कि घटना के बाद नेता जिस तरह एक पक्षीय बयानबाजी कर रहे हैं, वह पराजय से उपजी खीज का परिचायक है। चुनावों में जीत हार होती रही है। अभी हाल में लोकसभा में सपा ने बीजेपी को खासी चोट दी थी। दंगों के राजनीति ने कोर्ट के आदेश पर चल रहे घटनाक्रम में घी डाल दिया है। मिडिया रिपोर्ट के मुताबिक दंगे में तीन लोग मारे गए, कई गिरफ्तारियां हुई। कानूनी कार्यवाही उन्हें भुगतनी पड़ेगी जो सीसीटीवी में कैद हो गए हैं। दंगे में शामिल लोग भुगतेंगे, भड़काने वाली तो राजनीति की बंसरी बजाएगी। महाराष्ट्र और यूपी के परिणामों ने ऐसे ज़ख्म दिए कि संजय राउत जैसे नेता तक लगभग पगला गए हैं। यहां तक कह रहे हैं कि महाराष्ट्र सरकार का शपथ ग्रहण मुंबई की बजाय अहमदाबाद के मोदी स्टेडियम में होना चाहिए। अब इसी खीज ने यूपी में सम्भल के दंगे को हवा दी हो तो आश्चर्य कैसा ? मतलब यूपी में अगर अखिलेश की सरकार होती तो कोर्ट के आदेश का पालन भी नहीं हो पाता ? आपको याद होगा सामान्य दिनों में सब ठीक रहता रहा हैं। पिछले दस वर्षों से अराजकता का कहीं नामों निशान नहीं रहा था फिर अचानक यूपी को पश्चिम बंगाल और मणिपुर बनाने की चाहत रखने वाले कौन ? महाराष्ट्र और यूपी में विपक्ष की घोर पराजय होते ही अगले दिन दंगे भड़क गए या भड़का दिए गए ? वह भी मस्जिद में कोर्ट सर्वे का नाम लेकर जबकि जनता जानती हैं कि चुनाव का परिणाम ही इस दंगे का मूल हैं। यूपी में ना हिन्दू खतरे में हैं ना मुसलमान खतरे में हैं बस खतरे में परिवारवाद का अस्तित्व हैं जिसे बचाने को लेकर यह दंगे अब जगह – जगह प्रायोजित किए जा रहें। प्रदेश के पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक पंकज सीबी मिश्रा नें कहा कि उपचुनाव में बीजेपी की भारी भरकम जीत का सदमा अब राजनीतिक अवसरबाजों तथा गिद्धो को इस हद तक लगा हैं कि उनपर अब केवल अराजकता हावी हैं। रात ही रात में पथराव, आगजनी और दंगे को रंग देने की पूरी योजना बना लेना जाँच का विषय हैं। कुछ सर्वे बताते हैं कि 2014 के बाद देश में दंगों की संख्या में कमी आ गई थी। यूपी में सांप्रदायिक दंगे कराने की हिम्मत दंगाई और उनकी पीठ पर बैठे नेता नहीं कर पा रहे थे, किसी को याद भी नहीं रहा था कि मुरादाबाद के समीप स्थित सम्भल कभी यूपी के दंगों का मुख्य गढ़ था। मोदी के आने के बाद और फिर योगी राज में यूपी से दंगे बिल्कुल समाप्त हो गए थे। लेकिन शनिवार को यूपी और महाराष्ट्र के परिणामों की सुनामी क्या आई, राजनीति को मानों सांप सूंघ गया। अब जो लोग नौ में से नौ का ख्वाब देख रहे थे , जो लोग महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद मांग रहे थे, पराजय के बाद उनका दर्द स्वाभाविक है । आश्चर्य की बात है कि कांग्रेस वायनाड का जश्न तक न मना सकी। झारखंड में इंडी की बढ़िया जीत हुई, उस पर खुशी तक जाहिर न कर सकी। खैर , संभल का दंगा हर हाल में रुकना चाहिए। कोर्ट सर्वे उसी संविधान की लाल किताब के आधार पर हो रहा है, जिसे मंचों और संसद में लहराया जाता है। देश की जनता को न्याय पालिका पर पूरा भरोसा है। अदालत के हर निर्णय का पालन होना चाहिए, भले ही राजनीति को यह पसंद हो या न हो। जहां तक चुनावी हार जीत का सवाल है, लोकतंत्र में यह अधिकार जनता के पास है। आप जनता को दंगों के लिए तो हवा दे सकते हैं, वोटों के लिए उनके जान को जोखिम में नहीं डाल सकते।

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