जौनपुर। जफराबाद के प्री-इस्लामिक इतिहास को दिखाने के लिए पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान द्वारा बनाई जा रही डाक्यूमेंट्री फिल्म जफराबाद स्टोरी की दो दिनों की शूटिंग जल्द ही हमीरपुर जिले के जलालपुर कस्बे में की जाएगी। जिसमें आल्हखंड में वर्णित नदी बेतवा की लड़ाई का १२ से १५ मिनट का एक हिस्सा फिल्मांकित किया जायेगा। यह फिल्मांकन लाखन के चरित्र और उनकी वीरता को दिखाने के लिए किया जा रहा है।
कन्नौज के राजकुमार लाखन का जफराबाद के चप्पे-चप्पे पर नाम है। लाखन का अखाडा, लाखन की कचहरी, लाखन का बैठका जैसी यादें और स्मृति जीर्ण-शीर्ण अवस्था में अब भी मौजूद हैं।जफराबाद लाखन की सरदारी में था। राजा जयचंद के भतीजे लाखन नामी वीर थे। लाखों में एक होने के कारण उनका नाम लाखन पड़ा था। लाखन ने कजरिया और बेतवा की लड़ाई आदि कई युद्धों में भाग लिया और पृथ्वीराज को भी हराया। बाद में पृथ्वीराज के हाथों ही उनकी मौत हुई।
नदी बेतवा की लड़ाई के जिस अंश को फिल्मांकन के लिए चुना गया है, उसे बांदा निवासी आल्हा सम्राट रमेश सिंह स्वर दे रहे हैं। यह अंश: —
नदी बेतवा के झाबर मां बाजैं घूमि घूमि तलवार
ऐसी नाहर कनउज वाले वैसी दिल्ली के सरदार
से शुरू होकर
बहुतक घोडा प्रिथीराज के लूटे तहां बनाफर राय
बाकी तम्बू जे पिरथी के लाखन आग दीन लगवाय।
पर ख़त्म होता है।
यह लड़ाई हमीरपुर जिले के जलालपुर क्षेत्र में लड़ी गयी थी, जिसे बुंदेलखंड की काशी कहा जाता है। ११-१२वीं सदी में जलालपुर उस जलमार्ग का केंद्र था जो भोपाल से शुरू होकर काशी तक जाता था। जलालपुर में १०८ शिव मंदिर हैं।
पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान के सचिव ओम प्रकाश ने आल्हखंड के युद्दों के बारे में बताते हुए कहा है कि इन युद्धों की बहुत रोचक दास्तान है। कहते हैं कि महाभारत युद्ध जीतने के बाद पांडवों ने कहा कि युद्ध तो वासुदेव लड़े । हमारी तो युद्ध लड़ने की इच्छा पूरी ही नहीं हुई।उन्होंने कृष्ण से कहा कि वरदान दीजिए कि आगे हम एक बार खूब जी भर कर लड़ें। उनके अभिमान को देख कर श्रीकृष्ण भगवान ने उन्हें यह वरदान दे दिया। महाभारत के उन्हीं चरित्रों ने ११ वीं सदी में अपने अगले जन्म में यही आल्हखंड में वर्णित युद्ध लड़े। जिसमें द्रौपदी की विनाशकारी भूमिका पृथ्वीराज की बेटी बेला ने निभायी।
आल्हा थे धर्मराज, ऊदल थे भीम, ब्रह्मा थे अर्जुन, नकुल थे लाखन और सहदेव थे मलखान।दुर्योधन थे पृथ्वीराज, चौड़ा ब्राह्मण थे द्रोणाचार्य और दुस्शासन थे धांधू। पृथ्वीराज के पुत्र ताहर कर्ण के अवतार था।महाभारत युद्ध के कई पात्र दिल्ली और महोबा में जनमे और उन्होंने खूब अघाकर युद्ध किया।ऐसी परिस्थिति बन गयी थी कि लड़ाई के बगैर तो कोई विवाह ही नहीं होता था। ऐसे विवाह युद्ध बुखारा तक जा कर लड़े गए। और बरस अठारह क्षत्रिय जीवै, आगे जीवन को धिक्कार जैसा अल्प जीवन शान की बात बन गया।
उन्होंने कहा कि नदी बेतवा की लड़ाई पृथ्वीराज और लाखन के बीच लड़ी गयी। पृथ्वीराज ने महोबा घेर लिया तो महोबा की रक्षा का बीड़ा लाखन ने उठाया।लाखन और पृथ्वीराज की सेनाओं में बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। लाखन ने पृथ्वीराज के सरदार चौड़ा राय को हाथी से गिरा दिया। फिर कहा- मैं पैदल पर वार नहीं करता। दूसरा हाथी लाओ, फिर युद्ध करना। चौड़ा को हारा देख कर पृथ्वीराज ने खुद हमला किया। लाखन की सेना टिक नहीं पायी और पीछे हट गयी। लाखन अकेले रह जाते हैं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। बड़ी देर तक अकेले लड़ते रहे।उनके पराक्रम को देख उनकी सेना भी लौट आयी। लाखन की सहायता के लिए आल्हा-ऊदल भी आ पहुंचे। पृथ्वीराज की सेना का एक बड़ा हिस्सा गया और वे युद्ध छोड़ कर दिल्ली लौटने को मज़बूर हो गए।
ओम प्रकाश ने कहा कि नदी बेतवा की लड़ाई लाखन के पराक्रम और उनके राजपूती चरित्र को बहुत अच्छे से रेखांकित करती है।