शोक गीत…दो मिनट का मौन रखना

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स्वप्न मेरे मर चुके हैं, रात्रि में ले सिसकियाँ!
शोक की अंतिम घड़ी है, दो मिनट का मौन रखना!

भावनाएं ख़त्म हो कर, बन चुकी पाषाण पूरा
रीत रस्में सब निभाई, पर रहा सब कुछ अधूरा
मर चुका हो जब हृदय, तो देह मत जीवित
समझना
लाश ये मेरी पड़ी है, दो मिनट का मौन रखना!

स्वप्न मेरे मर चुके हैं, रात्रि में ले सिसकियाँ !
शोक की अंतिम घड़ी है, दो मिनट का मौन रखना!

पीर के इस गीत को, सौभाग्य मैं अपना कहूँगी
जी रही संघर्ष हूँ मैं, और उसी में रत रहूँगी

स्वप्न को साकार करने, में निरंतर रात दिन
श्वाँस आख़िर तक लड़ी है, दो मिनट का मौन रखना
स्वप्न मेरे मर चुके हैं, रात्रि में ले सिसकियाँ!
शोक की अंतिम घड़ी है, दो मिनट का मौन रखना!

वंदना “अहमदाबाद”

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