सुनो….!
तुम बिलकुल बोगनवेलिया जैसे हो !
जीवन की इस तपिश में तुम सुकून जैसे हो !
हाँ ! तुम बिलकुल बोगनबेलिया जैसे हो !!
पतझड़ में बहार बन छाने लगे हो !
प्रकृति श्रृंगार सजाने लगे हो !
फागुन की फुहार बरसाने लगे हो !
धीरे-धीरे मेरे मन को भाने लगे हो !!
देखो..!
तुम्हारे गुलाबी रंग में शायद मैं रंगने लगी हूँ !
मैं भी कुछ-कुछ तुम्हारे जैसी लगने लगी हूँ !
मन- तिमिर में रौशन इक दिया जैसे हो !
हॉं ! तुम बिलकुल बोगनवेलिया जैसे हो !!
कवयित्री प्रियंका सोनी