धूमधाम से मनाई जा रही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

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शेरपुर में महतरियो माई की विशेष पूजा, मुरलीधर राय के वंशज निभा रहे परंपरा

संवाददाता त्रिलोकी नाथ राय

गाजीपुर भाँवरकोल।
क्षेत्र में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। जगह-जगह पर जन्मोत्सव का आयोजन हुआ, भजन-कीर्तन और पूजा-अर्चना से वातावरण भक्तिमय बना रहा। इसी क्रम में ग्राम शेरपुर में जन्माष्टमी का पर्व विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा, जहाँ स्वर्गीय मुरलीधर राय के वंशजों ने महतरियो माई की पूजा कर पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा का निर्वाह किया।

शेरपुर की विशेष परंपरा : महतरियो माई की पूजा

शेरपुर गांव में जन्माष्टमी के दिन महतरियो माई की पूजा की जाती है, जो एक अनूठी परंपरा है। मान्यता है कि महतरियो माई भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं और अंतिम समय में उनकी देहज्योति स्वयं श्रीकृष्ण के विग्रह में समा गई थी। तभी से जन्माष्टमी पर्व पर उनकी पूजा का आयोजन होता है।

मुरलीधर राय के वंशजों का मानना है कि इस पूजा से परिवार और समाज की अनिष्ट से रक्षा होती है। ग्रामीण अशोक राय, सतेन्द्र राय, अंजनी राय, कृष्णकांत राय, सियाराम राय, हरिशंकर राय, उमेश चंद्र राय, प्रताप नारायण राय व कमल नारायण राय ने बताया कि यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है और इसका पालन करना उनके लिए सौभाग्य की बात है।

पूजा और ब्रह्म भोज

परंपरा के अनुसार जन्माष्टमी की रात पूजा-अर्चना के बाद अगले दिन ब्रह्म भोज का आयोजन किया जाता है। इसमें ब्राह्मणों और निर्धन जनों को श्रद्धापूर्वक भोजन कराया जाता है। भोजन के समय “महतरियो माई की जय” के उद्घोष से पूरा वातावरण गूंज उठता है।

महतरियो माई की कथा

ग्रामीणों के अनुसार महतरियो माई का जन्म मऊ जनपद के सहरोज गांव में हुआ था। बचपन से ही वे सात्विक, धर्मनिष्ठ और दानवीर स्वभाव की थीं। विवाह के बाद जब वे शेरपुर आईं तो उन्होंने देखा कि परिवार मांसाहार करता है। उन्होंने विरोध स्वरूप अन्न-जल त्याग दिया। बाद में जब ससुराल पक्ष ने मांस का त्याग किया तभी वे पुनः शेरपुर लौटीं। तभी से राय परिवार ने मांसाहार का परित्याग कर दिया, जो आज तक उनके वंशज निभा रहे हैं।

किंवदंती है कि वे इतनी दानवीर थीं कि दरवाजे से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। एक बार उन्होंने अपना वस्त्र तक दान कर दिया। इसी दौरान वे अंतर्ध्यान हो गईं। आकाशवाणी से उन्होंने अपने पुत्रों को आशीर्वाद दिया कि जन्माष्टमी पर पूजा-पाठ, दान और व्रत अवश्य करते रहना और मांसाहार का त्याग करना। तभी से यह परंपरा अनवरत जारी है।

जन्माष्टमी उत्सव का उल्लास

जन्माष्टमी पर शेरपुर ही नहीं, बल्कि पूरे गाजीपुर में उत्सव का भव्य आयोजन किया गया। लड्डू गोपाल के श्रंगार, झांकी, भजन-कीर्तन और दही-हांडी जैसे कार्यक्रमों से पूरा माहौल कृष्णमय हो उठा।

मुरलीधर राय के वंशज चाहे जहां भी रहते हों, इस दिन अपने पैतृक गांव शेरपुर आकर महतरियो माई की पूजा में शामिल होते हैं। श्रद्धा, भक्ति और परंपरा का यह संगम जन्माष्टमी पर्व को और भी विशेष बना देता है।

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